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पति के घरवालों के खिलाफ किया False Case तो अब खैर नहीं! 'हाई कोर्ट' की ये हिदायत जान लें

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने घरेलू हिंसा के एक मामले में पति के दूर के रिश्तेदारों के खिलाफ कार्यवाही को रद्द कर दिया, इस बात पर जोर देते हुए कि घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत केवल साझा घर में रहने वाले लोगों को ही प्रतिवादी माना जा सकता है. अदालत ने घरेलू हिंसा के विशिष्ट आरोपों का हवाला देते हुए पति और सास के खिलाफ मामले को बरकरार रखा और 60 दिनों के भीतर मुकदमा समाप्त करने का निर्देश दिया.

Written by Satyam Kumar Published : February 3, 2025 6:42 PM IST

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घरेलु हिंसा में पति के परिवार को घसीटना

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने घरेलू हिंसा के एक मामले में पति के कुछ परिवार के सदस्यों के खिलाफ मुकदमे की कार्यवाही को रद्द कर दिया है.

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कानूनी प्रक्रिया का दुरूपयोग

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा कि पति के घरवालों के खिलाफ झूठा मुकदमा दर्ज कराना कानूनी प्रक्रिया का दुरूपयोग (Abuse of Judicial Process) है.

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इलाहाबाद हाई कोर्ट

अदालत ने टिप्पणी किया कि आजकल घरेलु हिंसा के मामले में परिवार के अन्य सदस्यों को बिना ठोस सबूत के शामिल करने की प्रवृत्ति बढ़ रही है. महज पति के परिवार को परेशान करने के लिए उन्हें भी मामले में घसीटा जाता है.

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घर में जो साथ रहते हैं

वहीं, आरोपी बनाने को लेकर अदालत ने कहा कि केवल वे लोग जो पीड़ित महिला के साथ घर में रहते हैं, उन्हें उत्पीड़न के लिए जबावदेही के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है.

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पति और उसकी मां को राहत नहीं!

हाई कोर्ट ने मामले में पति और सास के खिलाफ मुकदमे की कार्यवाही को बरकरार रखते हुए ट्रायल कोर्ट को निर्देश देते हुए कहा कि वे इस मामले को 60 दिन के भीतर सुलझा लें.

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पति-पत्नी के बीच वैवाहिक विवाद

यह वैवाहिक विवाद पत्नी और उसके पति के बीच अनबन और झगड़े से शुरू हुआ था, जिसे लेकर पत्नी ने घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 की धारा 12 के तहत पति और उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ मामला दर्ज कराया.

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दहेज उत्पीड़न का मुकदमा रद्द कराने की मांग

जिसे रद्द कराने की मांग को लेकर पति, उसकी मां और पांच अन्य रिश्तेदारों ने मुकदमे को रद्द करने की मांग की है.

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हाई कोर्ट ने सुनाया फैसला

अदालत ने रिश्तेदारों के खिलाफ मुकदमे को रद्द करते हुए पति और उसकी मां के खिलाफ मुकदमे को बरकरार रखा है.