भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू (President Droupadi Murmu) ने हाल ही में कहा कि न्यायपालिका समाज का एक अभिन्न अंग है, इसलिए इसमें महिलाओं की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करना जरूरी है. न्यायपालिका में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी की वकालत करते हुए उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय में महिला न्यायाधीशों का प्रतिशत लगभग 9 प्रतिशत है, जबकि उच्च न्यायालयों में यह लगभग 14 प्रतिशत है.
उन्होंने आगे कहा,
"न्यायपालिका भी समाज का हिस्सा है, इसलिए मुझे लगता है कि यहां भी महिलाओं की उचित भागीदारी होनी चाहिए."
राष्ट्रपति मुर्मू 27 सितंबर को मध्य प्रदेश हाईकोर्ट (Madhya Pradesh High Court) के एनेक्सी भवन के लिए आयोजित शिलान्यास समारोह में बोल रही थीं. समारोह में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रवि मलिमथ, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और राज्यपाल मंगूभाई सी पटेल शामिल थे.
कार्यक्रम में राष्ट्रपति मुर्मू का भाषण भारत में महिला सशक्तिकरण की आवश्यकता पर काफी हद तक केंद्रित था. उन्होंने संसद में हाल ही में पारित हुए महिला आरक्षण विधेयक का हवाला देते हुए समावेशी भारत के निर्माण में महिला सशक्तिकरण के महत्व के बारे में बात की.
राष्ट्रपति ने कहा कि महिलाओं का सशक्तिकरण भारत के लिए बहुत जरूरी है. पिछले सप्ताह संसद में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत सीटें आरक्षित करने के लिए बिल पारित किया गया. मुझे विश्वास है कि यह पहल महिलाओं के राजनीतिक सशक्तिकरण के लिए बहुत क्रांतिकारी होगी.
उन्होंने आगे कहा,
" न्याय प्रणाली में महिलाओं की अधिक भागीदारी न्यायपालिका के हित में भी होगी.आज न्यायपालिका बड़ी संख्या में लंबित मामलों, बड़ी संख्या में विचाराधीन कैदियों, अदालतों के बुनियादी ढांचे में विकास आदि जैसी चुनौतियों का सामना कर रही है. देश भर की निचली अदालतों में लगभग 4.5 करोड़ मामले लंबित हैं. कई मामले 20 से 30 वर्षों से लंबित हैं."
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि न्यायपालिका से जुड़े सभी लोगों का लक्ष्य आम लोगों को सरल, सुलभ और त्वरित न्याय प्रदान करना होना चाहिए.