नई दिल्ली: बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में मेडिकल बोर्ड की सिफ़ारिश को खारिज करते हुए 33 सप्ताह की गर्भवती महिला को गर्भ को समाप्त करने की अनुमति दी है.
जस्टिस जीएस पटेल और जस्टिस एसजी डिगे की पीठ ने अपने फैसले में गर्भपात को महिला का अधिकार बताते हुए कहा कि एक महिला को गर्भपात चुनने का अधिकार है, ना कि मेडिकल बोर्ड को.
पीठ ने अपने फैसले में कहा कि याचिकाकर्ता महिला द्वारा गर्भपात की अनुमति के लिए दायर याचिका को खारिज करना एक गर्भवती महिला को उसके सम्मान के अधिकार से वंचित करने जैसा होगा.
बॉम्बे हाईकोर्ट में एक महिला ने अपने गर्भ को समाप्त करने को लेकर याचिका दायर की थी. हाईकोर्ट ने गर्भपात की अनुमति से पूर्व महिला और भ्रूण की मेडिकल बोर्ड द्वारा रिपोर्ट पेश करने के आदेश दिए थे.
मेडिकल बोर्ड ने भ्रूण की लंबाई और उसके 33 सप्ताह की अवधि को देखते हुए गर्भपात के खिलाफ अपनी रिपोर्ट पेश की. बोर्ड ने कहा कि गर्भपात के लिए देर हो चुकी थी.
मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट का विरोध करते हुए याचिकाकर्ता गर्भवती महिला की ओर से अदालत में कहा गया कि देश में 24 सप्ताह के बाद भी गर्भपात पूरी तरह से प्रतिबंधित नहीं है.
याचिकाकर्ता ने इस मामले में अदालत के समक्ष तर्क प्रस्तुत करते हुए कहा कि मेडिकल बोर्ड ने वास्तव में स्वीकार किया है कि भ्रूण असामान्यताओं से पीड़ित है, लेकिन केवल इस आधार पर बोर्ड ने गर्भपात की सलाह नहीं दी कि गर्भावस्था का समय अधिक हो चुका है.
लेकिन गर्भावस्था में देर से भ्रूण की असामान्यता का पता चलने पर क्या होगा, इस पर क़ानून मौन है.
याचिकाकर्ता महिला द्वारा पेश किए गए तर्क से सहमत होते हुए पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता के लिए इस तरह का फैसला लेना आसान नहीं रहा होगा, लेकिन इस मामले में याचिकाकर्ता ने अपना फैसला लिया है.
पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता को क़ानून की शर्तें पूरी होने के बाद, अकेले ही निर्णय लेना है. वह एक वयस्क विवाहित महिला है जिसने एक सूचित निर्णय लिया है, और यह उसका अधिकार था कि वह भ्रूण को समाप्त करे या गर्भावस्था के साथ आगे बढ़े.
पीठ ने कहा कि गर्भपात चुनने का अधिकार याचिकाकर्ता का है, यह मेडिकल बोर्ड का अधिकार नहीं है. पीठ ने आगे कहा कि यह भी अदालत का अधिकार नहीं है कि याचिकाकर्ता के अधिकारों को एक बार कानून के दायरे में आने के बाद रद्द कर दिया जाए.
हाईकोर्ट ने गर्भवती महिला के तर्को से सहमत होते हुए यह माना कि गर्भपात की याचिका को ख़ारिज करना गर्भवती महिला को सम्मान के अधिकार से वंचित करने जैसा होगा.
जस्टिस जीएस पटेल और जस्टिस एसजी डिगे की पीठ ने कहा कि केवल देरी के आधार पर गर्भपात की समाप्ति से इनकार करने पर, यह अदालत न केवल भ्रूण के जीवन बल्कि मां के भविष्य के लिए भी मुश्किल बनेगी. जो निश्चित रूप से पितृत्व की हर सकारात्मक विशेषता को नष्ट करेगी.
पीठ ने कहा कि गर्भपात से इंकार करना यह उसके सम्मान के अधिकार और उसकी प्रजनन और निर्णय लेने की स्वायत्तता का खंडन करना होगा.