नई दिल्ली: देश के सर्वोच्य न्यायालय में महिलाओं के लिए पीरियड्स लीव (Periods Leave) को लेकर एक जनहित याचिका दायर की गई है. जिसके तहत देश भर में महिला छात्रों और कामकाजी महिलाओं के लिए मासिक धर्म (Menstruation) की छुट्टी के लिए शीर्ष अदालत की हस्तक्षेप की मांग की गई है. याचिका के द्वारा कई अहम बिंदुओं की ओर सुप्रीम कोर्ट का ध्यान केंद्रित किया गया है.
अपनी जनहित याचिका में, अधिवक्ता शैलेंद्र मणि त्रिपाठी ने अदालत के समक्ष व्यक्त किया कि हमेशा से ही मासिक धर्म चक्र को समाज, विधायिका और अन्य हितधारकों ने अनदेखा किया है, और महिलाओं को अवधि अवकाश ना मिलना संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है.
याचिका में कहा गया कि भारत की कुछ ऐसी कंपनियां है जो ऐसे वक्त पर महिलाओं को छुट्टी देती है. Zomato, Swiggy, Byju, Mathrubhumi, Magzter, ARC, Ivipanan, Fly MyBiz, and Gozoop ये वो कंपनियां है जो पीरियड लीव प्रदान करती हैं, फिर भी बहुत सी कंपनियां ऐसा नहीं करती.
याचिकाकर्ता ने कहा कि राज्यों में, केवल बिहार अपनी 1992 की नीति के तहत विशेष माहवारी दर्द अवकाश प्रदान करता है.
याचिका में कांग्रेस नेता शशि थरूर का भी उल्लेख किया गया है. जिसके तहत ये बताया गया कि उन्होने 2018 में दो निजी सदस्य बिल (महिला यौन, प्रजनन और मासिक धर्म अधिकार विधेयक) लोकसभा में पेश किए थे. जिसमें प्रस्तावित किया गया था कि जितनी भी सार्वजनिक प्राधिकरण (Public Authorities) है उन्हें अपने परिसर में महिलाओं के लिए सैनिटरी पैड को स्वतंत्र रूप से उपलब्ध करानी चाहिए. अन्य संबंधित विधेयक, मासिक धर्म लाभ विधेयक, 2017 को बजट सत्र के पहले दिन 2022 में प्रस्तुत किया गया था, लेकिन विधानसभा ने इसे नजरअंदाज कर दिया.
याचिका के अनुसार यह इस मामले में विधायी इच्छाशक्ति की कमी को दर्शाता है.
जनहित याचिका में यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के एक स्टडी का हवाला दिया गया है. जिसके अनुसार पीरियड्स के दौरान एक महिला को जितना दर्द होता है, उतना ही दर्द एक व्यक्ति को दिल का दौरा पड़ने पर होता है. याचिका में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि इस तरह का दर्द एक कर्मचारी की प्रोडक्टिविटी को कम करता है और उनके काम पर असर डालता है.
याचिकाकर्ता ने यह भी कहा है कि यूके, वेल्स, चीन, जापान , ताइवान, इंडोनेशिया, साउथ कोरिया, स्पेन और जांबिया में माहवारी के लिए छुट्टी अलग-अलग नाम पर दी जाती है. दिल्ली हाई कोर्ट ने केंद्र और दिल्ली सरकार को कहा था कि माहवारी छुट्टी के लिए दाखिल पीआईएल को रिप्रजेंटेशन के तौर पर देखा जाए. लोकसभा में केंद्रीय मंत्री ने लिखित जवाब में कहा था कि 'सेंट्रल सिविल सर्विसेज लीव रूल्स 1972' में 'पीरियड्स लीव' के लिए कोई प्रावधान नहीं है.
याचिका में 1961 के मातृत्व लाभ अधिनियम की धारा 14 को लागू करने के निर्देश भी मांगे गए हैं, जिससे अधिनियम को लागू करने के लिए निरीक्षकों की नियुक्ति होगी. याचिकाकर्ता ने बताया कि वर्तमान में, केवल मेघालय ने ही अधिकारियों की नियुक्ति की है.
याचिका में अनुच्छेद और अधिनियम का भी जिक्र किया गया है आईए उन पर भी एक नजर डालते हैं:
संविधान के अनुच्छेद 14 में समानता के अधिकार के बारे में बताया गया है. सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने घोषित किया है कि समानता का अधिकार हमारे संविधान की मूल विशेषता है. समानता का अधिकार (Right to Equality) के अनुसार देश के कानून के सामने सभी नागरिकों के साथ समान व्यवहार किया जाना चाहिए चाहे वो व्यक्ति किसी भी जाति, लिंग, नस्ल, धर्म या जन्म स्थान से हो.
मातृत्व लाभ अधिनियम(Maternity Benefit Act) 1961, मातृत्व के समय महिला के रोजगार की रक्षा करता है और मातृत्व लाभ का हकदार बनाता है- इस अधिनियम के अनुसार जो महिला गर्भवती होती हैं उन्हे अपने गर्भावस्था के साथ बच्चा हो जाने के बाद तक अगर वो किसी कंपनी में काम करती है तो उनके रोजगार की रक्षा करता है. कुछ नियम हैं जो हर कंपनी या संगठन को मानना होगा. महिला को अपने बच्चे की देखभाल के लिए पूरे भुगतान के साथ उन्हें काम से अनुपस्थित रहने की सुविधा हर संगठन को देनी होगी. यह अधिनियम दस या उससे अधिक व्यक्तियों के रोजगार वाले सभी प्रतिष्ठानों पर लागू है.