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Bombay High Court ने क्यों कहा कि कुत्ते, बिल्लियाँ इंसान नहीं हैं ?

Bombay High Court ने पुलिस द्वारा Swiggy delivery boy पर IPC की कई धाराओं में मामला दर्ज करने पर फटकार लगाते हुए याचिकाकर्ता के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने के आदेश दिए हैं. 18 वर्षिय स्टूडेंट को हुई परेशानी के लिए High Court ने राज्य सरकार पर 20 हजार का जुर्माना भी लगाया है. जो जिम्मेदार अधिकारियों से वसूला जाएगा.

Written by Nizam Kantaliya |Published : January 5, 2023 5:13 AM IST

नई दिल्ली: बॉम्बे हाईकोर्ट ने तेज ग​ति और लापरवाही से गाड़ी चलाते हुए किसी जानवर के जीवन को खतरे में डालने के मामले में महत्वपूर्ण व्यवस्था दी है.

बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा है कि IPC के तहत लापरवाही से गाड़ी चलाकर जीवन को खतरे में डालने का अपराध उन मामलों में लागू नहीं होगा जहां पर घटना में शिकार एक जानवर है.

जस्टिस रेवती मोहिते डेरे और जस्टिस पृथ्वीराज चव्हाण की पीठ ने अपने फैसले में कहा कि IPC की धारा 279 मानव जीवन को खतरे में डालने के लिए किसी भी वाहन को चलाने वाले के बारे में बात करती है, धारा 337 मानव जीवन को खतरे में डालने के बारे में बात करती है.

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फिर भी वे इंसान नही है

पीठ ने कहा कि निस्संदेह, एक कुत्ता या बिल्ली को उसके मालिक द्वारा एक बच्चे या परिवार के सदस्य के रूप में माना जाता है, लेकिन बुनियादी जीव विज्ञान बताता है और हम भी कहते हैं कि वे इंसान नहीं हैं.

पीठ ने कहा कि IPC की धारा 279 और 337 मानव जीवन को खतरे में डालने वाले कृत्यों से संबंधित हैं ना कि किसी अन्य व्यक्ति को चोट या चोट लगने की संभावना से है.

इसके साथ ही पीठ ने गलती से अपने वाहन से कुत्ते को कुचलने वाले Swiggy delivery person के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने के आदेश दिए है.

पीड़ित जानवर है तो लागू नहीं

पीठ ने फैसले में कहा कि IPC के प्रावधानों में तेजी से गाड़ी चलाने और जीवन को खतरे में डालने वाले प्रावधान उस मामले में लागू नहीं होंगे जहां एक जानवर पीड़ित है, क्योकि इस तरह के मामलो में एक अपराध को स्थापित करने के लिए आवश्यक तथ्य नही हो सकते.

पीठ ने कहा कि IPC की धारा 279 और 337 मानव जीवन को खतरे में डालने वाले कृत्यों से संबंधित हैं और ये धाराए मानव के अलावा किसी अन्य की चोट को नही पहचानती हैं और ना ही अपराध बनाती हैं.

इसलिए जहां तक तेज गति के वाहन से ​​पालतू पशु की चोट या मृत्यु से संबंध है, IPC की धारा 279 और 337 के तहत अपराध स्थापित नही हो सकता.

खर्च के लिए पार्ट टाइम जॉब

याचिकाकर्ता Manas Mandar Godbole एक 18 वर्षीय युवक जो कि इलेक्ट्रॉनिक्स और दूरसंचार में डिप्लोमा कर रहा था. अपने खर्च के लिए कॉलेज के बाद Swiggy delivery boy के तौर पर कार्य कर रहा था.

घटना के समय भी याचिकाकर्ता फूड पार्सल की डिलीवरी के लिए मरीन ड्राइव क्षेत्र से गुजर रहा था. जहां पर शिकायतकर्ता सड़क पर कुछ आवारा कुत्तों को खाना खिला रही थी.

घटना के दौरान एक कुत्ता अचानक ही याचिकाकर्ता Swiggy delivery boy की मोटरसाइकिल के सामने आ गया, जिससे वह घायल हो गया और बाद में उसकी मौत हो गई. इस घटना में याचिकाकर्ता को भी वाहन से गिरने के चलते चोट आयी.

इस मामले में शिकायकर्ता को मौके पर ही पकड़ लिया गया और पुलिस को सौप दिया गया. बाद में शिकायतकर्ता महिला ने Swiggy delivery boy के खिलाफ पुलिस में शिकायत दी.

पुलिस ने तो हद ही कर दी

शिकायत के आधार पर पुलिस ने Swiggy delivery boy के खिलाफ IPC की धारा 279 में तेजी से गाड़ी चलाना, IPC की धारा 337 में मानव जीवन को खतरे में डालना और IPC की धारा 429 में पचास रुपये मूल्य के किसी भी मूल्य या किसी भी जानवर की हत्या या अपाहिज बनाने की शरारत करने के तहत मामला दर्ज किया.

बाद में पुलिस ने इस मामले में मोटर वाहन अधिनियम की धारा 184 में खतरनाक तरीके से ड्राइविंग और पशु क्रूरता निवारण अधिनियम की धारा 11ए और बी में जानवरों के साथ क्रूर व्यवहार के लिए मामला बनाया.

एक स्टूडेंट था ना कि अपराधी

हाईकोर्ट के समक्ष याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ताओं ने तर्क पेश किए कि घटना के समय याचिकाकर्ता एक स्टूडेंट था और वह अपने खर्च के लिए Swiggy delivery boy के तौर पर कार्य कर रहा था.

याचिकाकर्ता का मकसद किसी को भी नुकसान पहुंचाना नही था, इसके विपरित घटना के समय अवारा कुत्तो को शिकायतकर्ता महिला द्वारा सड़क पर खाना खिलाया जा रहा था. जिसके चलते ये घटना हुई.

याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि घटना के समय याचिकाकर्ता एक 18 वर्षिय युवक होने के साथ एक छात्र भी था और पुलिस की इस कार्रवाई से उसके भविष्य को नुकसान पहुंचा है.

बिना दिमाग लगाए

दोनो पक्षो की बहस सुनने के बाद हाईकोर्ट ने इस मामले में पुलिस द्वारा लगाई गई धाराओं को लेकर फटकार लगाई. पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता के खिलाफ प्राथमिकी में कथित रूप से कोई अपराध नहीं बनता है और यह कानून में कायम नहीं रह सकता है.

खंडपीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता फूड पार्सल देने के लिए जा रहा था और उसका कुत्ते की मौत का कारण बनने का कोई इरादा नहीं था, जो सड़क पार कर रहा था जब वह अपनी बाइक पर था.

हाईकोर्ट ने पुलिस को फटकार लगाते हुए कहा कि पुलिस ने इस मामले में बिना दिमाग लगाए कई धाराओं में मामला दर्ज किया है.

सतर्क और चौकस रहें पुलिस

पीठ ने कहा "अभियोजन पक्ष द्वारा यह दिखाने के लिए कुछ भी नहीं दिखाया गया है कि याचिकाकर्ता उक्त सड़क पर निर्धारित गति सीमा से अधिक गाड़ी चला रहा था. घटना से पता चलता है कि कुत्ते ने सड़क पार करने का प्रयास किया, जिसके परिणामस्वरूप याचिकाकर्ता की बाइक अचानक ब्रेक लगाने के कारण फिसल गई " इस तरह याचिकाकर्ता को उक्त घटना में अपने शरीर पर चोटें आईं और कुत्ता घायल हो गया और बाद में उस ने दम तोड़ दिया.

पीठ ने कहा कि इस मामले में कैसे धारा 279, 337, 429 को लागू किया जा सकता था. पुलिस को कानून का संरक्षक होने के नाते एफआईआर दर्ज करते समय अधिक चौकस और सतर्क रहने की आवश्यकता है.

सरकार पर जुर्माना

पीठ ने इस मामले में पुलिस द्वारा एफआईआर दर्ज करने पर भी सवाल खड़े करते हुए कहा कि यह देखते हुए कि पुलिस ने किसी अपराध का खुलासा नहीं होने के बावजूद इस मामले में मामला दर्ज कर याचिकाकर्ता को परेशान किया है.

पीठ ने इस पर राज्य सरकार को आदेश दिए कि वह याचिकाकर्ता को मुआवजे के तौर पर 20 हजार रूपये का भुगतान करे. पीठ ने जुर्माने की राशि जिम्मेदार संबंधित अधिकारियों के वेतन से भी वसूलने के भी आदेश दिए है.

पीठ ने याचिकाकर्ता Manas Mandar Godbole के पक्ष में फैसला देते हुए पुलिस को उसके खिलाफ दर्ज एफआईआर रद्द करने के आदेश दिए है. पीठ ने एफआईआर रद्रद करते हुए चार्जशीट दाखिल करने की मंजूरी दी है.