नई दिल्ली: भारतीय फिल्मों में हमेशा दिखाया जाता है की जब भी पुलिस किसी अपराधी को पकड़ती है तो उसे हथकड़ी (handcuffs) लगा कर ले जाती है, लेकिन असल ज़िंदगी में ऐसा नहीं होता है. पुलिस किसी भी अपराध के लिए अपराधी को हथकड़ी नहीं लगा सकती. पुलिस सिर्फ अपने वरिष्ठ (senior) अधिकारी के आदेश पर ही हथकड़ी लगा सकते हैं.
सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देश के अनुसार सिर्फ गैर-जमानती (गंभीर) अपराध करने वाले को ही हथकड़ी लगाई जा सकती है या फिर कोई ऐसे व्यक्ति को भी हथकड़ी लगाया जा सकता है जो गिरफ्तारी के समय ऐसा कुछ करे की गिरफ्तारी में रुकावट बने या आत्महत्या करने की कोशिश करें या ऐसे ही कोई अन्य ठोस कारण होने की स्थिति में मजिस्ट्रेट के आदेश के बाद हथकड़ी लगाई जा सकती है.
बिना गंभीर अपराध करने वाले अपराधी को हथकड़ी लगाने से उसके मौलिक अधिकार (Fundamental Rights) का उल्लंघन होता है. हमारे देश के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत हर व्यक्ति को गरिमा के साथ जीने (Right to life with dignity) का मौलिक अधिकार है और हथकड़ी लगाने से एक नागरिक के आत्मसम्मान (self-respect) से जीवन जीने के खिलाफ है.
अगर पुलिस बिना कोर्ट ऑर्डर के हथकड़ी लगाती है तो यह अदालत की अवमानना (Contempt of Court) मानी जाती है और ऐसा करने वाले अधिकारी के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही की जाती है.
Citizens For Democracy vs State Of Assam, 1995 इस केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि किसी भी केदी या under trial आरोपी को जेल से दूसरा जेल ले जाने के समय या जेल से कोर्ट और कोर्ट से जेल ले जाने समय हथकड़ी नहीं लगाई जा सकती.
इस केस में मुजरिम को हॉस्पिटल में बेड के साथ बांध कर रखा गया था, और मरीज के कमरे के बाहर सख्त पुलिस का पहरा भी था. इसके बावजूद उसे हथकड़ी लगाकर रखा गया था. इस मामले में कोर्ट ने माना था कि ऐसा करने से उसके मौलिक अधिकार का उल्लंघन हुआ है.
Prem Shankar Shukla vs Delhi Administration,1978 इस केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सामान्य मामलों में आरोपी को हथकड़ी नहीं लगाया जा सकता है, हथकड़ी लगाने से उसके मौलिक अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 और 19 की उल्लंघन होगी जो Right to Freedom की गारंटी देते है.