पॉक्सो (POCSO) एक्ट का उद्देश्य बच्चों को सभी प्रकार के यौन शोषण से बचाना और पीड़ित बच्चों को उचित न्याय दिलाना है. इस कानून के तहत यौन उत्पीड़न और पोर्नोग्राफी से बच्चों की सुरक्षा के संबंध में प्रावधान हैं. यह अधिनियम यौन शोषण के पीड़ितों के लिए एक मजबूत न्याय तंत्र प्रदान करता है और बाल अधिकारों और सुरक्षा के महत्व पर जोर देता है.
Written by My Lord Team|Published : January 16, 2023 7:50 AM IST
नई दिल्ली: यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (POCSO -The Protection Of Children From Sexual Offences Act) एक ऐसा कानून है जिसका उद्देश्य बच्चों को सभी प्रकार के यौन शोषण से बचाना है. पॉक्सो अधिनियम के तहत नाबालिग बच्चों के प्रति यौन उत्पीड़न, यौन शोषण और पोर्नोग्राफी जैसे यौन अपराध और छेड़छाड़ के मामलों की जांच के लिए विशेष न्यायालयों की स्थापना और उनसे जुड़े मामलों के लिए प्रावधान बनाया गया. POCSO ACT के अंतर्गत 9 अध्याय और 46 धाराएं हैं.
POCSO ACT की जरूरत
POCSO अधिनियम को बच्चों के खिलाफ यौन शोषण के बढ़ रहे मामलों को देखते हुए लागू किया गया था. इसमें यौन उत्पीड़न और पोर्नोग्राफी से बच्चों की सुरक्षा के संबंध में प्रावधान हैं और इन कानूनों के लागू करने की प्रक्रिया निर्धारित की गई है.
यह अधिनियम यौन शोषण के पीड़ितों के लिए एक मजबूत न्याय तंत्र प्रदान करता है और बाल अधिकारों और सुरक्षा के महत्व पर जोर देता है. इसके बनने के बाद जागरूकता के परिणामस्वरूप बाल यौन शोषण के मामलों की रिपोर्टिंग में भी वृद्धि हुई है.
बच्चों के साथ यौन शोषण की घटनाएं स्कूलों, धार्मिक स्थलों, पार्कों, छात्रावासों आदि में होती हैं परन्तु बच्चों की सुरक्षा के लिए कहीं भी कोई उचित प्रबंध नहीं होता है. इस तरह के उभरते खतरों के साथ, अलग कानून पेश करना महत्वपूर्ण था जो ऐसे अपराधों की संख्या को कम करने और अपराधियों को दंडित करने के लिए एक विश्वसनीय प्रणाली प्रदान करे.
इस कानून के अंतर्गत अलग-अलग बाल यौन अपराध के लिए अलग-अलग सज़ा निर्धारित की गई है. आईये जानते हैं कि POCSO ACT के अंतर्गत किन अपराधों के लिए क्या है सजा का प्रावधान:
1. बच्चों के खिलाफ यौन अपराध
बच्चों के खिलाफ किसी भी तरह के यौन अपराध जैसे पेनेट्रेटिव यौन हमला, उग्र पेनेट्रेटिव यौन हमला, यौन हमला, उग्र यौन हमला, यौन उत्पीड़न आदि के लिए POCSO ACT के द्वितीय अध्याय (Chapter II) में सज़ा का प्रावधान है.
अपराध की प्रकृति और संजीदगी के आधार पर सज़ा की अवधि कम से कम तीन साल और अधिक्तम आजीवन कारावास तक हो सकती है. इसके साथ-साथ अपराधी को उप-धारा (1) के तहत न्यायसंगत और उचित जुर्माना लगाया जा सकता है जो पीड़ित के चिकित्सा खर्च और पुनर्वास को पूरा करने के लिए होता है.
2. पोर्नोग्राफी के लिए बच्चे का उपयोग करना
यौन संतुष्टि के लिए जो कोई भी, मीडिया (प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक, कंप्यूटर या किसी अन्य तकनीक) जैसे किसी भी माध्यम से बच्चे का उपयोग पोर्नोग्राफी के उत्पादन, पेशकश, प्रसारण, प्रकाशन, सुविधा और वितरण के लिए करता है, वह कानून की नज़रों में अपराधी है.
POCSO ACT के तीसरे अध्याय (Chapter III) में इस अपराध के लिए कम से कम तीन साल तक की जेल और अधिक्तम सात साल की सज़ा या उचित जुर्माना या दोनों का प्रावधन है.
3. बच्चों के प्रति अपराध करने के लिए उकसाना और उसका प्रयास करना
यदि कोई व्यक्ति अपराध को बढ़ावा देता है या किसी भी व्यक्ति को वह अपराध करने के लिए उकसाता है या उस अपराध के षड़यंत्र में अन्य व्यक्ति या व्यक्तियों के साथ शामिल होता है, तो उसे POCSO ACT के चौथे अध्याय (Chapter IV) के आधार पर अपराध के लिए दिए गए किसी भी विवरण से दंडित किया जा सकता है.
दंड की अवधि आजीवन कारावास की आधी तक हो सकती है, या उस अपराध के लिए दी गई कारावास की सबसे लंबी अवधि का आधा या जुर्माना या दोनों हो सकती है.
POCSO ACT की विशेषताएं
लैंगिक समानता प्रावधान (Gender-neutral provisions) : POCSO अधिनियम पीड़ित या अपराधियों के बीच उनके लिंग के आधार पर कोई भेद नहीं करता है. बच्चे की परिभाषा में 18 वर्ष से कम आयु का कोई भी व्यक्ति शामिल है और कई मामलों में, अदालतों ने महिलाओं को बाल यौन शोषण की घटनाओं में शामिल होने के लिए दोषी भी ठहराया है. यह भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) के प्रावधानों की सबसे बड़ी कमियों में से एक को दूर करता है.
बाल शोषण के मामलों की अनिवार्य रिपोर्टिंग(Mandatory reporting of child abuse cases): यौन शोषण के मामले बंद दरवाजों के पीछे होते हैं और लोग इन अपराधों से जुड़े बदनामी के कारण इन घटनाओं को छिपाने का प्रयास करते हैं। इसलिए तीसरे पक्ष द्वारा इन घटनाओं की रिपोर्टिंग, जिन्हें ऐसे अपराधों की जानकारी या आशंका है, पोक्सो अधिनियम की धारा 19 से 22 के तहत अनिवार्य है। ये कानून इस धारणा के आधार पर बनाए गए हैं कि बच्चे कमजोर और असहाय होते हैं और बच्चों के हितों की रक्षा करना समाज का कर्तव्य है.
पीड़ित की पहचान की गोपनीयता (Confidentiality of the victim’s identity) : धारा 23(2) में कहा गया है, "किसी भी मीडिया में कोई भी रिपोर्ट किसी बच्चे की पहचान का खुलासा नहीं करेगी, जिसमें उसका नाम, पता, फोटो, परिवार का विवरण, स्कूल, पड़ोस और कोई भी अन्य विवरण शामिल है, जिससे बच्चे की पहचान का खुलासा हो सकता है."
POCSO अधिनियम की धारा 23 मीडिया की प्रक्रिया के लिए प्रदान करती है और पीड़ित बच्चे की पहचान को छुपाए रखने के लिए कर्तव्य को लागू करती है जब तक कि विशेष न्यायालय ने प्रकटीकरण की अनुमति नहीं दी हो.
बच्चों के अनुकूल जांच और परीक्षण (Child-friendly investigation and trial): POCSO अधिनियम की धारा 24, 26 और 33 में जांच और परीक्षण की प्रक्रिया निर्धारित की गई है, जिसे बच्चे की जरूरतों को ध्यान में रख कर बनाया गया है। POCSO अधिनियम के तहत अपराध की जांच करते समय कुछ बातों पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए, जैसे- जिस अधिकारी को बच्चे का बयान दर्ज करना है, उसे वर्दी नहीं पहननी चाहिए और वह एक महिला पुलिस अधिकारी हो, बच्चे को रात में थाने में नहीं रखना चाहिए, बच्चे की पहचान उजागर न हो, परीक्षण के दौरान बच्चे से आक्रामक पूछताछ की अनुमति नहीं है, आदि.