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क्या पति के देहांत के बाद अलग रह रही पत्नी को उसका पेंशन पाने का अधिकार है? जानें इलाहाबाद हाई कोर्ट ने क्या फैसला सुनाया

दोनों पक्षों को सुनने के बाद इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा किअलग रह रही पत्नी को अपने पति की मौत के बाद पारिवारिक पेंशन प्राप्त करने का अधिकार है. अदालत ने कहा कि पत्नी का यह अधिकार, उन बेटों के अधिकार से ऊपर है जिन्हें नियोक्ता के रिकॉर्ड में पति द्वारा नॉमिनी बनाया गया है.

Written by Satyam Kumar |Published : August 1, 2025 10:58 AM IST

क्या पति से अलग रह रही पत्नी को परिवारिक पेंशन यानि पति को मिलने वाली पेंशन पाने का अधिकार है? क्या पति के देहांत के बाद पत्नी को यह पेंशन पाने का अधिकार है? क्या पति से अलग रहने के बावजूद बाल-बच्चों की जगह पत्नी को पेंशन पाने का अधिकार है? इस सभी सवालों से जुड़े एक मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अहम फैसला सुनाया है. इस मामले में याचिकाकर्ता के पति सहायक अध्यापक थे और 2016 में सेवानिवृत्त होने के बाद से 2019 में मौत होने तक वह पेंशन प्राप्त कर रहे थे. उर्मिला सिंह अपने पति से अलग रह रही थी और वह 8,000 रुपये मासिक गुजारा भत्ता पर पूरी तरह निर्भर थी.

याचिकाकर्ता ने पति की मौत के बाद पारिवारिक पेंशन प्राप्त करने के लिए आवेदन किया, जिसे इस आधार पर खारिज कर दिया गया कि पेंशन राशि के लिए पति द्वारा दिए गए दस्तावेजों में परिवार के सदस्यों में उसका नाम शामिल नहीं है. याचिकाकर्ता ने इस निर्णय के खिलाफ हाई कोर्ट का रुख कर यह दावा किया कि वह सहायक अध्यापक की पत्नी है और ग्राम प्रधान के प्रमाण पत्र द्वारा यह साबित किया गया था, जिसके बाद से वह 8,000 रुपये गुजारा भत्ता प्राप्त कर रही थी. अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता की आयु 62 वर्ष है और वह अपने पति से गुजारा भत्ता प्राप्त कर रही थी और पारिवारिक पेंशन पाने की हकदार है.

जस्टिस मंजू रानी चौहान ने उर्मिला सिंह नाम की महिला की रिट याचिका स्वीकार करते हुए कहा कि अलग रह रही पत्नी को अपने पति की मौत के बाद पारिवारिक पेंशन प्राप्त करने का अधिकार है. अदालत ने कहा कि पत्नी का यह अधिकार, उन बेटों के अधिकार से ऊपर है जिन्हें नियोक्ता के रिकॉर्ड में पति द्वारा नॉमिनी बनाया गया है.

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इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 27 जुलाई को दिए आदेश में कहा कि पारिवारिक पेंशन वैधानिक है और यह कर्मचारी के एकतरफा नियंत्रण से परे है. पारिवारिक पेंशन को एक कानूनी अधिकार के तौर पर माना जाता है, खैरात के तौर पर नहीं. अदालत ने प्रतिवादी अधिकारियों को याचिकाकर्ता के पक्ष में पारिवारिक पेंशन जारी करने का निर्देश दिया.