नई दिल्ली: उत्तराखंड हाई कोर्ट (Uttarakhand High Court) ने 'ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड' (All India Muslim Personal Law Board) को एक नोटिस जारी किया है. हाई कोर्ट ने यह नोटिस उस याचिका की सुनवाई के दौरान जारी की जिसमें मुस्लिम लॉ के तहत 18 साल से नीचे की उम्र वाली लड़कियों की शादी की इजाजत को चुनौती दी गई है.
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि उत्तराखंड हाईकोर्ट के मुख्य न्यायधीश जस्टिस विपिन सांघी (Justice Vipin Sanghi) और जस्टिस आलोक कुमार वर्मा (Justice Alok Kumar Verma) ने 'ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड' (AIMPLB) को एक जनहित याचिका सुनवाई के बाद की जिसे 'यूथ बार एसोसिएशन ऑफ इंडिया' (Youth Bar Association of India) ने मुस्लिम लॉ के तहत लड़कियों की शादी के लिए उम्र क्या है, इसपर सवाल उठाते हुए दायर किया है.
जनहित याचिका (PIL) में याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट से केंद्र सरक्रार को दिशा-निर्देश जारी करने की मांग रहे हैं ताकि वो एक मानक संचालन प्रक्रिया (Standard Operating Procedure) तैयार कर सकें, जिसके तहत इस बात का ध्यान रखा जाये कि 18 साल से कम उम्र वाली किसी भी लड़की की शादी की इजाजत न दी जाए, फिर वो चाहे किसी भी धर्म, रिवाज या क्षेत्रीय कानूनों को मानती हो.
इस याचिका के अनुसार, एक मुस्लिम लड़की की तब शादी करवा दी गई थी जब उसकी उम्र सिर्फ 15 साल थी. याचिका के हिसाब से इस शादी का सीधा असर लड़की के उन अधिकारों पर पड़ा जो संविधान के अनुच्छेद 21 में दिए गए हैं- सम्मान से जीने का मूल अधिकार, शिक्षा पाने का अधिकार, अच्छे स्वास्थ्य और सुरक्षा का अधिकार. इस कम उम्र में शादी कराने से लड़की पर शोषण और उत्पीड़न का खतरा भी बढ़ जाता है.
याचिका में इस बात पर भी सवाल उठाया गया है कि यदि 18 साल की उम्र से पहले एक मुस्लिम लड़की की शादी की इजाजत दे दी जाती है तो क्या इससे 'बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006' (Prohibition of Child Marriage Act 2006) और 'लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम 2012' (Protection of Children from Sexual Offences Act, 2012 (POSCO)) जैसे कानूनों का उल्लंघन होता है?
याचिका में यह भी कहा गया है कि लड़की के लिए शादी की उम्र कानून के हिसाब से 18 साल होती है लेकिन कोर्ट में कई ऐसे फैसले लिए गए हैं जिनमें मुस्लिम लड़की की शादी की लीगल एज 15 साल मानी गई है. याचिकाकर्ता ने यहां 'गुलाम दीन बनाम स्टेट ऑफ पंजाब' (Gulam Deen vs State of Punjab) जैसे मामलों का जिक्र किया.