उत्तराखंड हाई कोर्ट ने देहरादून के विकास नगर क्षेत्र में झुग्गीवासियों के घरों को ढहाने पर रोक लगाते हुए कहा है कि बिना सुनवाई का मौका दिए घरों को ढ़हाना प्राकृतिक न्याय (Natural Justice) के सिद्धांतों के खिलाफ हैं. उत्तराखंड हाई कोर्ट में चीफ जस्टिस जी नरेंद्र और जस्टिस आशीष नैथानी की खंडपीठ ने संबंधित जनहित याचिका (PIL) पर सुनवाई करते हुए कहा कि स्थानीय निवासियों को सुनवाई का अवसर दिये बिना ही तोड़फोड़ करने के नोटिस जारी कर दिये गए. पीठ ने आदेश दिया कि अदालत के अगले आदेश तक तोड़फोड़ पर रोक रहेगी. अदालत के आदेश के अनुसार, याचिकाकर्ता अपने स्वामित्व को सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार साबित करने वाले संपत्ति दस्तावेज 15 अप्रैल तक हाई कोर्ट में दाखिल करेंगे.
जनहित याचिका के अनुसार, याचिकाकर्ता देहरादून जिला स्थित विकास नगर के विभिन्न गांवों के निवासी हैं और देश के वैध नागरिक हैं. उसे पांच अप्रैल को नोटिस प्राप्त हुए, जिनमें कहा गया है कि उनकी संपत्तियों को ध्वस्त किया जाना है क्योंकि वे जल निकायों, मौसमी जल धाराओं और नालों पर बने हैं. याचिका में दावा किया गया है कि प्रशासन ने संपत्ति के विवरण की पुष्टि किये बिना ही नोटिस जारी कर दिए. इसमें दावा किया गया है कि नोटिस पाने वाले ज्यादातर लोग अशिक्षित हैं और समाज के निचले तबके से हैं, जिन्हें परिणामों के बारे में उपयुक्त जानकारी नहीं है.
याचिका में यह भी दावा किया गया है कि जिन लोगों को नोटिस जारी किये गए, उनके पास अपना मालिकाना हक साबित करने के लिए संपत्ति के वैध दस्तावेज हैं और उनमें से ज्यादातर का जल निकायों और जल धाराओं से कोई लेना-देना नहीं है. सैटेलाइट से प्राप्त इलाके की तस्वीरों से पता चलता है कि जिन लोगों को तोड़फोड़ के नोटिस मिले हैं, वे मौसमी जल धाराओं, नालों और जल निकायों से बहुत दूर रहते हैं.
(खबर एजेंसी इनपुट से है)