नई दिल्ली: पटना हाई कोर्ट के 7 जजों का GPF खाता बंद करने के मामले में अब सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और बिहार सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है.
सीजेआई डी वाई चन्द्रचूड़ और जस्टिस पी एस नरसिम्हा की पीठ ने ये आदेश पटना हाईकोर्ट के जज जस्टिस शैलेन्द्र सिंह, जस्टिस अरुण कुमार झा, जस्टिस जितेन्द्र कुमार, जस्टिस आलोक कुमार पांडेय, जस्टिस सुनील दत्त मिश्रा, जस्टिस चन्द्रप्रकाश सिंह और जस्टिस चन्द्रशेखर झा की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए है.
हाईकोर्ट जजों की ओर से केंद्रीय कानून और न्याय मंत्रालय द्वारा सामान्य भविष्य निधि खातों को बंद करने के आदेश को चुनौती दी गई है.
देश के न्यायिक इतिहास का संभवतया ये पहला मामला था जब हाईकोर्ट जज खुद की फरियाद लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंचे है. ये सभी जज न्यायिक सेवा कोटे से 22 जून को ही जज नियुक्त किए गए हैं. हाईकोर्ट जज बनने के बाद कानून मंत्रालय ने इन सभी के GPF अकाउंट को बंद कर दिया था.
याचिका में कहा गया है कि हाई कोर्ट के जजों के साथ इस आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता कि वे न्यायिक सेवा कोटे से नियुक्त हुए हैं, मंत्रालय ने यह कहकर खाते बंद किए है कि न्यायिक सेवा में उनकी नियुक्ति साल 2005 के बाद हुई थी. जजों का कहना है कि उन्हें भी वही सुविधा मिलनी चाहिए जो सुविधा बार कोटे से नियुक्त जजों को दी जा रही है.
कानून मंत्रालय के आदेश के अनुसार हाईकोर्ट जज के रूप में पदोन्नति से पहले, याचिकाकर्ताओं को न्यायिक अधिकारियों के रूप में राष्ट्रीय पेंशन योजना के तहत कवर किया गया था.इसलिए उनके पूर्व खातों को बंद किया गया.
हाईकोर्ट जजों की ओर से अदालत में कहा गया कि हाई कोर्ट के जजों का वेतन और सेवा की शर्तें अधिनियम, 1954 की धारा 20 का प्रावधान प्रदान करता है, “एक न्यायाधीश जिसने संघ या राज्य के तहत किसी भी अन्य पेंशन योग्य सिविल पद पर कार्य किया है, वह उस भविष्य निधि में अंशदान करना जारी रखेगा, जिसमें वह था.