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मंदिरों में VIP दर्शन को समाप्त करने की मांग पर SC का सुनवाई से इंकार, लेकिन याचिकाकर्ता को ये राहत भी दी

मंदिरों में प्रवेश के लिए VIP दर्शन की प्रथा को हटाने के लिए दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई से इंकार करते हुए कहा याचिका अनुच्छेद 32 के तहत स्वीकार्य नहीं है, लेकिन अगर संबंधित अथॉरिटी चाहे तो कार्रवाई कर सकते हैं.

Written by Satyam Kumar |Updated : January 31, 2025 3:00 PM IST

देश के प्रसिद्ध मंदिरों में देवी देवताओं के वीआईपी (VIP) दर्शन की व्यवस्था खत्म करने की मांग वाली अर्जी पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई से इंकार किया है. याचिका में कहा गया था कि मंदिरों में विशेष या जल्द 'दर्शन' के लिए अतिरिक्त 'वीआईपी दर्शन शुल्क' वसूलना मूल अधिकारों का उल्लंघन है. इस से उन भक्तों के साथ भेदभाव होता है जो ऐसे शुल्क नहीं दे सकते. उन्हें लंबे समय तक भक्तों के दर्शन का इतंज़ार करना होता है.

VIP दर्शन पर SC की दो टूक

सीजेआई संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि कोर्ट याचिकाकर्ता की इस दलील से सहमत है कि मंदिरों में वीआईपी को तरजीह नहीं दी जानी चाहिए, लेकिन आर्टिकल 32 के तहत यह याचिका सुनवाई करने लायक नहीं है. अगर सम्बंधित ऑथोरिटी कोई कार्रवाई करना चाहती है तो उस पर कोई रोक नहीं है.

याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिवक्ता आकाश वशिष्ठ ने कहा कि वीआईपी दर्शन की यह परंपरा पूरी तरह से मनमानी है और 12 ज्योतिर्लिंग होने के कारण कुछ मानक संचालन प्रक्रियाओं की आवश्यकता है. फिर भी सुप्रीम कोर्ट ने अपनी विवश्ता बताते हुए याचिकाकर्ता को संबंधित प्राधिकरण के पास जाने की छूट दी है.

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महिलाओं, दिव्यांगों के साथ भेदभाव

शीर्ष अदालत वृंदावन में श्री राधा मदन मोहन मंदिर के 'सेवायत' विजय किशोर गोस्वामी द्वारा इस मुद्दे पर दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी. याचिका में कहा गया है कि यह प्रथा संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 में निहित समानता के सिद्धांतों का उल्लंघन करती है, क्योंकि इससे शुल्क वहन करने में असमर्थ श्रद्धालुओं के साथ भेदभाव होता है. याचिका में मंदिर में देवताओं के शीघ्र दर्शन के लिए लगाए जाने वाले अतिरिक्त शुल्क के बारे में भी कई चिंताएं जताई गईं.

याचिका में कहा गया कि विशेष दर्शन सुविधाओं के लिए 400 से 500 रुपये तक शुल्क वसूलने से साधन संपन्न श्रद्धालुओं और उन लोगों के बीच विभाजन पैदा हो गया है जो इस शुल्क को वहन करने में असमर्थ हैं, विशेषकर वंचित महिलाएं, दिव्यांग व्यक्ति और वरिष्ठ नागरिक. याचिका में कहा गया है कि इस बारे में गृह मंत्रालय को अवगत कराने के बावजूद केवल आंध्र प्रदेश को निर्देश जारी किया गया, जबकि उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश जैसे अन्य राज्यों को कोई निर्देश नहीं दिया गया.

संविधान का आर्टिकल 32

आर्टिकल 32, व्यक्ति के अधिकारों के उल्लंघन को बहाल करने के उपायों की बात करता है. इस अनुच्छेद के अनुसार कोई भी व्यक्ति, अपने अधिकारों की बहाली के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर सकता है. वहीं, सुप्रीम कोर्ट परिस्थिति के अनुसार विभिन्न आदेश और निर्देश जारी कर सकती है, जिसमें हैबियस कॉर्पस, मंडमस, निषेधाज्ञा, क्वो वारंटो और सर्टियरी जैसे रिट शामिल हैं.

(खबर एजेंसी इनपुट से हैं)