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कोर्ट से जुड़े मामलों में जाति या धर्म पूछने की प्रथा समाप्त हो, जानें Supreme Court ने ऐसा क्यों कहा

सुप्रीम कोर्ट ने केस ट्रासफर से जुड़ी याचिका पर दोनों पक्षों के जाति का जिक्र देखा. इस पर कार्रवाई करते हुए सभी हाईकोर्ट और उनके अधीनस्थ कोर्ट को यह आदेश दिया कि मुकदमों/याचिका/ कार्रवाही के दौरान वादी या प्रतिवादी के जाति/धर्म के उल्लेख पर जल्द से जल्द रोक लगाए.

Supreme Court

Written by My Lord Team |Published : January 29, 2024 7:13 PM IST

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला लिया है. कोर्ट ने आदेश में अपने रजिस्ट्री, सभी हाईकोर्ट और उसके अंदर आने वालो कोर्टो को नये निर्देश दिए है. इस निर्देश में कहा है कि केस पेपर में वादी के जाति/धर्म पूछने की प्रथा समाप्त होनी चाहिए. एक केस ट्रासफर याचिका पर सुनवाई के दौरान बेंच की नजर केस के कागजातों पर दोनों पक्ष के जाति का विवरण लिखा देखा, जिस पर त्वरित कार्रवाई करते हुए ये फैसला लिया.

कोर्ट से जुड़े मामलों में जाति/धर्म का ना हो उल्लेख 

यह फैसला जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की बेंच ने दिया. बेंच ने कहा कि वादी से उसका धर्म और जाति पूछने का चलन जल्द से जल्द समाप्त होनी चाहिए.

बेंच ने कहा,

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"हमें किसी वादी के जाति-धर्म पूछने के पीछे कोई उचित कारण नहीं दिखाई पड़ता है. इसलिए इस चलन को जल्द से जल्द रोकने के निर्देश दिए जाते हैं. मामले में सभी हाईकोर्ट और उनके नीचे आनेवाले सभी कोर्ट यह सुनिश्चित करें कि किसी पेटिशन/सूट / कार्यवाही के दौरान वादी के जाति/धर्म को पूछा जाए."

ट्रांसफर याचिका पर दोनों पक्षों के जाति का उल्लेख

सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्णय वैवाहिक विवाद में स्थानांतरण याचिका पर सुनवाई करने के दौरान लिया. याचिका में केस को राजस्थान के परिवारिक कोर्ट से पंजाब के परिवारिक कोर्ट में ट्रांसफर करने की मांग की गई थी. सुनवाई के दौरान कागजातों पर नजर जाने पर दोनों जस्टिस ने दोनों पक्षों का जाति लिखा देख दंग रह गए.

इस विषय पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कोर्ट ने कहा,

"इस आदेश की एक प्रति संबंधित रजिस्ट्रार के सामने जाँच के लिए रखी जाएगी और सख्ती से अनुपालन के लिए सभी उच्च न्यायालयों के रजिस्ट्रार जनरलों को प्रसारित की जाएगी."

जब कोर्ट किसी व्यक्ति से जुड़े मामलों की सुनवाई करता है, तो उस दौरान अभियुक्त व्यक्ति के जाति/धर्म का कोई महत्व नहीं होता. साथ ही जजमेंट के टाइटल(Title of Judgement) में भी इस बात का कोई जिक्र नहीं होता है.