नई दिल्ली: हमारे देश के कानून के अनुसार ना केवल अपराध करने वाला व्यक्ति दोषी है बल्कि अपराध को पूरा करने की साजिश रचने वाला या अपराधी की मदद करने वाला व्यक्ति भी दोषी माना जाता है.
IPC की धारा 213 और 214 इससे संबंधित है और ऐसे कृत्यों के लिए सज़ा का प्रावधान बनाती है. इस धारा के तहत यदि कोई व्यक्ति किसी अपराधी को बचाने के लिए कोई उपहार या संपत्ति लेता है या देता है, इन दोनों ही स्थिति में उस व्यक्ति के खिलाफ मामला दर्ज़ किया जा सकता है और सख्त सज़ा भी दी जा सकती है.
धारा 213 के अनुसार यदि कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति के अपराध को छुपाने या किसी व्यक्ति को कानूनी सजा से बचाने, या किसी व्यक्ति के खिलाफ कानूनी कार्यवाही न करने के लिए कोई उपहार या संपत्ति को स्वीकार करता है या प्राप्त करने का प्रयास करता है, या स्वीकार करने के लिए सहमत होता है, तो उसके खिलाफ कार्यवाही की जा सकती है.
IPC की धारा 214 के मुताबिक यदि कोई व्यक्ति किसी अपराध को छुपाने या किसी व्यक्ति को कानूनी सजा से बचाने, या किसी व्यक्ति के खिलाफ कानूनी कार्यवाही न करने के उद्देश्य से किसी अन्य व्यक्ति को कोई उपहार या कोई संपत्ति देता है या देने के लिए सहमत होता है तो उसके खिलाफ कार्यवाही की जा सकती हैं.
इन धाराओं के अंतर्गत परिभाषित अपराधों का एक अपवाद (Exception) भी है, जिसके अनुसार, धारा 213 और 214 के प्रावधान किसी ऐसे आपराधिक मामलों में लागू नहीं होते हैं, जिन अपराधों में कानूनी तौर पे समझौता किया जा सकता है.
आरोपी जिसे बचाने की कोशिश की जा रही है, उसके द्वारा अंजाम दिए गए अपराध को ध्यान में रखते हुए धारा 213 और 214 के तहत दी जाने वाली सज़ा को 3 भाग में बांटा गया है.
यदि अपराध मृत्यु से दंडनीय हो: इस स्थिति में जो व्यक्ति धारा 213 या 214 के तहत दोषी पाया जाता है, तो उसे 7 वर्ष के कारावास के साथ-साथ जुर्माने की सज़ा हो सकती है.
यदि अपराध आजीवन कारावास या 10 वर्ष से अधिक के कारावास से दंडनीय हो: इस स्तिथि में जो व्यक्ति धारा 213 या 214 के तहत दोषी पाया जाता है, तो उसे 3 वर्ष के कारावास के साथ-साथ जुर्माने की सज़ा हो सकती है.
यदि अपराध दस वर्ष से कम के कारावास से दंडनीय हो: इस स्थिति में जो व्यक्ति धारा 213 या 214 के तहत दोषी पाया जाता है, तो उसे अपराध के लिए उपबंधित कारावास की अवधि की एक-चौथाई अवधि के कारावास या जुर्माने या दोनों की सज़ा हो सकती है।
IPC की धारा 213 और 214 के अंतर्गत दिए गए जमानती और संज्ञेय अपराध है यानी इस तरह के अपराध के मामलों में अपराधी को बिना वारंट (Warrant) के गिरफ्तार किया जा सकता है. इस तरह के अपराध के मामलों में समझौता नहीं किया जा सकता है.