नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय (Supreme Court of India) ने एक अपात्र मध्यस्थ द्वारा किसी अन्य व्यक्ति को मध्यस्थ नामित करने के कानूनी प्रश्न पर सुनवाई बुधवार को 13 सितंबर के लिए स्थगित कर दी। प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ (Chief Justice of India DY Chandrachud) की अध्यक्षता वाली पांच-सदस्यीय संविधान ने सुनवाई की।
पीठ ने अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी (Attorney General of India R Venkatramani) की इस दलील का संज्ञान लिया कि केंद्र ने एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया है, जो देश में मध्यस्थता कानून की कार्य पद्धति पर गौर करेगी और मध्यस्थता एवं सुलह अधिनियम में सुधार की सिफारिश करेगी।
उच्चतम न्यायालय की इस पीठ ने कहा, ‘‘अटॉर्नी जनरल ने दलील दी है कि संविधान पीठ के समक्ष उठाये गये मुद्दे नि:संदेह समिति के दायरे में आएंगे। समिति की रिपोर्ट के बाद सरकार कानून में सुधार की जरूरत महसूस होने की स्थिति में निर्णय लेगी...।’’
न्यायालय ने कहा, ‘‘इस तरह, अभी हम यह निर्देश देते हैं कि संविधान पीठ के समक्ष दिये गये संदर्भ दो महीने की अवधि के लिए टाल दिये जाएं। समिति के गठन के बाद हुई प्रगति से न्यायालय को अगली तारीख पर अवगत कराया जाए। इसे 13 सितंबर के लिए सूचीबद्ध किया जाए।’’
पीठ में न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय (Justice Hrishikesh Roy), न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा (Justice PS Narasimha), न्यायमूर्ति पंकज मित्तल (Justice Pankaj Mittal) और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा (Justice Manoj Mishra) भी शामिल हैं।
शीर्ष न्यायालय ने 2017 और 2020 में कहा था कि मध्यस्थ नियुक्त होने के लिए अपात्र व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति को मध्यस्थ नामित नहीं कर सकता। इसके बाद, एक अन्य मामले में 2020 में उच्चतम न्यायालय ने मध्यस्थ बनने के लिए अपात्र व्यक्ति द्वारा की गई नियुक्ति को मंजूरी दे दी थी।
भारत को अंतरराष्ट्रीय मध्यस्था का केंद्र बनाने के लिए जोर दिये जाने के बीच सरकार ने पूर्व विधि सचिव टी.के. विश्वनाथन की अध्यक्षता वाली एक विशेषज्ञ समिति गठित की है, जो अदालतों पर मुकदमों का भार घटाने के लिए मध्यस्थता एवं सुलह अधिनियम में सुधार की सिफारिश करेगी।
वेंकटरमणी भी केंद्रीय कानून मंत्रालय द्वारा गठित विशेषज्ञ समिति का हिस्सा हैं। कानून मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव राजीव मणि, कुछ वरिष्ठ अधिवक्ता, निजी लॉ फर्म के प्रतिनिधि और विधायी विभाग, नीति आयोग, भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण, रेलवे और केंद्रीय लोक निर्माण विभाग के अधिकारी इसके सदस्य बनाये गये हैं। प्रधान न्यायाधीश ने विषय की पड़ताल करने के लिए 26 जून को पांच-सदस्यीय संविधान पीठ गठित की थी।