Supreme Court Issues Directions On Nameplate: सुप्रीम कोर्ट ने कांवड़ रास्ते में आनेवाले होटल व्यवसायी को नेमप्लेट लगाने के फैसले पर रोक लगा दी है. सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि दुकानदारों को केवल भोजन के प्रकार बताने की जरूरत है, उन्हें अपना नाम दिखाने की जरूरत नहीं है. सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स की याचिका पर आया जिन्होंने सरकार के 'नाम दिखाने' के फैसले पर रोक लगाने की मांग की थी. इस मामले में लोकसभा सांसद महुआ मोइत्रा ने भी याचिका दायर की है जिसमें अभी सुनवाई होनी है.
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस हृषिकेश रॉय और जस्टिस एसवीएन भट्टी की बेंच ने नेमप्लेट दिखाने के मामले पर रोक लगाने की मांग की है.
क्या ये प्रेस बयान में जारी किये गये 'आदेश' या 'निर्देश' हैं?
जिस पर याचिका की ओर से मौजूद सीनियर एडवोकेट अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि पहले ये प्रेस स्टेटमेंट थे, लेकिन पुलिस अधिकारियों ने इसे सख्ती लागू कराना शुरू कर दिया.
जस्टिस रॉय ने फिर पूछा,
क्या सरकार की ओर से कोई औपचारिक आदेश जारी किया गया है?
डॉ. सिंघवी ने जवाब दिया कि यह एक “भ्रामक आदेश” है. जवाब में जस्टिस रॉय ने बताया कि कुछ निर्देश स्वैच्छिक प्रकृति के हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा,
"दुकानदारों को अपना नाम दिखाने की जरूरत नहीं है. उन्हें केवल भोजन के प्रकार (शाकाहारी या मांसाहारी) बताने की जरूरत है."
सुप्रीम कोर्ट ने उक्त आदेश देते हुए उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकार को नोटिस जारी किया है.
एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स नामक एनजीओ ने उत्तर प्रदेश सरकार के नेमप्लेट दिखाने के आदेश के खिलाफ याचिका दायर की. याचिकाकर्ताओं ने इन निर्देशों को धार्मिक भेदभाव पैदा करने वाला बताते हुए चुनौती दी तथा ऐसे निर्देश जारी करने के लिए प्राधिकारियों की शक्ति के स्रोत पर सवाल उठाया.