शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान सरकार को सेवानिवृत्त सरकारी आयुष चिकित्सकों का रूका हुआ (लंबित) वेतन एक सप्ताह के भीतर जारी करने का निर्देश दिया है, जिन्हें उच्च न्यायालय के फैसले के बाद बहाल किया गया था. इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा कि आयुष चिकित्सकों के साथ ‘‘सौतेला’’ व्यवहार क्यों किया गया? बता दें कि सुप्रीम कोर्ट की ये टिप्पणी राजस्थान सरकार की अपील पर आया है, जिसमें उन्होंने राजस्थान हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी है. सरकार ने अपनी अपील में कहा था कि एलोपैथिक चिकित्सकों और चिकित्सा की वैकल्पिक प्रणालियों से जुड़े चिकित्सकों की सेवानिवृत्ति की आयु अलग-अलग नहीं हो सकती.
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने शुक्रवार को उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ राज्य सरकार की अपीलों पर गौर किया. पीठ ने तब अप्रसन्नता जाहिर की जब आयुष चिकित्सकों के वकील ने कहा कि हालांकि उन्हें सेवा में वापस ले लिया गया है, लेकिन उनके वेतन के भुगतान में पांच महीने की देरी हुई है.
सीजेआई ने कहा,
‘‘वे सभी चिकित्सक के रूप में काम कर रहे हैं. आयुर्वेद के साथ यह सौतेला व्यवहार क्यों... आपने वेतन जारी क्यों नहीं किया?’’
पीठ ने सरकार से एक सप्ताह के भीतर वेतन जारी करने को कहा. पीठ ने वकील से राज्य में चिकित्सकों की सेवानिवृत्ति की आयु से संबंधित मुद्दे से उत्पन्न मामलों का एक चार्ट तैयार करने को कहा.
सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान हाईकोर्ट में अवमानना का सामना कर रहे अधिकारियों के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं करने के सॉलिसिटर जनरल के अनुरोध को भी स्वीकार कर लिया. बता दें कि हाईकोर्ट ने आदेश दिया था कि जो लोग 60 वर्ष की आयु तक पहुंचने पर सेवानिवृत्त हो गए हैं, लेकिन 62 वर्ष की आयु पूरी नहीं की है, उन्हें तुरंत सेवा में बहाल किया जाए.
एलोपैथिक चिकित्सकों की कमी को ध्यान में रखते हुए राजस्थान सरकार ने 31 मार्च, 2016 से उनकी सेवानिवृत्ति की आयु 60 से बढ़ाकर 62 वर्ष कर दी थी जिसके कारण सरकारी आयुष (आयुर्वेद, योग, प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी, सिद्ध और होम्योपैथी) चिकित्सकों की ओर से याचिकाएं दायर की गई थीं. सरकार द्वारा नियुक्त आयुष चिकित्सकों की सेवानिवृत्ति की आयु 60 वर्ष ही रही.
राजस्थान उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा था कि राज्य के सभी सरकारी चिकित्सकों के लिए सेवानिवृत्ति की आयु समान होनी चाहिए. आयुष चिकित्सकों की शिकायतों पर विचार करते हुए उच्च न्यायालय ने कहा था कि यदि वे 31 मार्च, 2016 के बाद सेवानिवृत्त हुए तो उन्हें 62 वर्ष की आयु तक सेवा में माना जायेगा.