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कैदियों के साथ समान व्यवहार किया जाना सुनिश्चित करें: SC की राज्य सरकारों को दो टूक

जेल में सभी जातियों के कैदियों के साथ मानवीय तरीके से और समान व्यवहार किया जाना चाहिए.

सांकेतिक चित्र (पिक क्रेडिट: Pexels)

Written by Satyam Kumar |Updated : October 3, 2024 11:46 AM IST

सुप्रीम कोर्ट जेल में कैदियों के साथ जातीय भेदभाव से जुड़ी याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि जेल में सभी जातियों के कैदियों के साथ मानवीय तरीके से और समान व्यवहार किया जाना चाहिए. याचिका में दावा किया गया कि राज्य की नियमावली जेल में जातीय भेदभाव को बढ़ा रही है. सुप्रीम कोर्ट ने साफ तौर पर कहा कि कैदियों के साथ एकसमान व्यवहार न करना औपनिवेशिक विरासत है, इसे जल्द से जल्द समाप्त किया जाना चाहिए.

जेल में कैदियों के साथ हो एकसमान व्यवहार: SC

सुप्रीम कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने जेलों में जाति आधारित भेदभाव को रोकने के लिए कई निर्देश भी जारी किए. पीठ ने कहा कि राज्य मैनुअल के अनुसार जेलों में हाशिए पर पड़े वर्गों के कैदियों के साथ भेदभाव करने के लिए जाति एक आधार नहीं हो सकती है.

सुप्रीम कोर्ट ने जेल अधिकारियों को निर्देश देते हुए कहा कि अधिकारियों को कैदियों के साथ समान व्यवहार करना चाहिए. कैदियों के बीत जातीय आधार पर भेदभाव करने से उनके बीच दुश्मनी पैदा होगी. सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि कैदियों को भी गरिमापूर्ण जीवन का अधिकार है. उन्हें किसी भी तरह के काम में नहीं लगाया जाएगा. शीर्ष अदालत ने कैदियों को खतरनाक परिस्थितियों में सीवर टैंकों की सफाई करने की अनुमति नहीं दी जाएगी.

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मॉडल जेल नियमों के अनुसार हो संशोधन

सुप्रीम कोर्ट  ने केंद्रीय गृह मंत्रालय और अन्य को नोटिस जारी करते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से महाराष्ट्र के कल्याण की मूल निवासी सुकन्या शांता द्वारा दायर याचिका में उठाए गए मुद्दों से निपटने में सहायता करने को कहा था. पीठ ने याचिकाकर्ता के वकील की इन दलीलों पर गौर किया कि केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा तैयार किए गए मॉडल जेल मैनुअल के अनुसार राज्य जेल मैनुअल में किए गए संशोधनों के बावजूद, राज्यों की जेलों में जातिगत भेदभाव किया जा रहा है.

जेल में कैसे हो रही थी जातीय भेदभाव?

याचिकाकर्ता महाराष्ट्र के कल्याण की मूल निवासी सुकन्या शांता ने दावा किया राज्य द्वारा बनाए गए नियम जेल में जातीय भेदभाव की भावना को बढ़ा रही है. याचिका में केरल जेल नियमों का हवाला दिया गया और कहा गया कि वे आदतन अपराधी और दोबारा दोषी ठहराए गए अपराधी के बीच अंतर करते हैं और कहते हैं कि जो लोग आदतन डाकू, सेंध लगाने वाले, डकैत या चोर हैं, उन्हें अलग अलग श्रेणियों में विभाजित किया जाए और अन्य दोषियों से अलग रखा जाए. याचिका में दावा किया गया कि पश्चिम बंगाल जेल संहिता में कहा गया है कि जेल में काम जाति के आधार पर किया जाना चाहिए, जैसे खाना पकाने का काम प्रमुख जातियों द्वारा किया जाएगा और सफाई का काम विशेष जातियों के लोगों द्वारा किया जाएगा.