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केवल देखना ही नहीं, चाइल्ड पोर्न को फोन में रखना भी अपराध है, सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास HC के फैसले को किया खारिज

सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट के फैसले को खारिज करते हुए कहा कि फोन में चाइल्ड पोर्न को रखना व देखना आईटी एक्ट व पॉक्सो अधिनियम के तहत अपराध है(To watch & Store Child Porn in Phone is Crime under IT and POCSO Act).

Written by Satyam Kumar |Updated : September 23, 2024 11:55 AM IST

सुप्रीम कोर्ट ने चाइल्ड पोर्न को लेकर बड़ा फैसला सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट के फैसले को खारिज करते हुए कहा कि फोन में चाइल्ड पोर्न को रखना व देखना आईटी एक्ट व पॉक्सो अधिनियम के तहत अपराध है(To watch & Store Child Porn in Phone is Crime under IT and POCSO Act). बता दें कि मद्रास हाईकोर्ट ने चाइल्ड पोर्न देखना व मोबाइल में स्टोर करके रखने को पॉक्सो एक्ट एवं आईटी अधिनियम के तहत अपराध मानने से इंकार कर दिया था.

पॉक्सो अधिनियम की धारा 15(2) और 15 (3) के तहत अपराध

सुप्रीम कोर्ट में सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ ने मामले की सुनवाई की. सुप्रीम कोर्ट ने पॉक्सो एक्ट की धारा 15 (2) और धारा 15(3) का जिक्र किया. अदालत ने पॉक्सो अधिनियम की धारा 15(2) का जिक्र करते हुए कहा कि आरोपी के खिलाफ यह सबूत होना चाहिए कि उसने इस तरह के कंटेट को शेयर किया है. वहीं पॉक्सो अधिनियम की धारा 15(3) को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब चाइल्ड पोर्न का स्टोरेज किसी तरह का लाभ या किसी अन्य इरादे से किया गया है तब चाइल्ड पोर्न का रखना-देखना शेयर करना अपराध होगा.

SC ने संसद से पॉक्सो एक्ट में संशोधन करने को कहा

फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने संसद से गुजारिश की वे पॉक्सो अधिनियम में संशोधन करने पर विचार करें, जहां चाइल्ड पोर्नोग्राफी की जगह बाल यौन शोषण और शोषणकारी सामग्री (Child Sexual Harassment and exploitative material) का प्रयोग करने के निर्देश दिए हैं.

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क्या है मामला?

इंटरनेट से चाइल्ड पोर्नोग्राफी डाउनलोड करने के आरोप में एक युवक के खिलाफ अम्बत्तूर पुलिस थाने में शिकायत दर्ज हुई. युवक पर पॉक्सो एक्ट एवं आईटी एक्ट के उल्लंघन का आरोप लगा. मामला मद्रास हाईकोर्ट पहुंचा. जस्टिस आनंद वेंकटेश ने इस मामले को यह कहते हुए रद्द किया कि चाइल्ड पोर्नोग्राफी देखना पॉक्सो और आईटी एक्ट के तहत अपराध नहीं है.

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में दो याचिकाकर्ता संगठनों का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता एच एस फुल्का की दलीलों पर ध्यान दिया था कि उच्च न्यायालय का फैसला इस संबंध में कानूनों के विपरीत था. वरिष्ठ अधिवक्ता फरीदाबाद स्थित गैर सरकारी संगठन ‘जस्ट राइट फॉर चिल्ड्रेन अलायंस’ और नयी दिल्ली स्थित ‘बचपन बचाओ आंदोलन’ की ओर से पेश हुए. ये दोनों संगठन बच्चों के कल्याण के लिए काम करते हैं.

अब सुप्रीम कोर्ट ने चाइल्ड पोर्नोग्राफी को अपराध बना दिया है.