सुप्रीम कोर्ट ने उपमुख्यमंत्री (Deputy Chief Minister) के पद की भूमिका को चुनौती देनेवाली याचिका पर सुनवाई की. कोर्ट ने बताया उपमुख्यमंत्री का पद असंवैधानिक (Unconstitutional) नहीं है. ये एक लेबल (Label) मात्र है. इससे कोई अतिरिक्त लाभ नहीं है. साथ ही उपमुख्यमंत्री की पद पाने वाले पहले से ही राज्य के अन्य विभाग के मंत्री बनाए जाते हैं. याचिकाकर्ता ने उपमुख्यमंत्री के पद को अनुच्छेद 14 और 51ए का भी उल्लंघन बताया. लेकिन सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने इससे इंकार कर याचिका को खारिज कर दी.
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने मामले की सुनवाई की. इस याचिका को 'पब्लिक पॉलिटिकल पार्टी' ने दायर की. याचिका में विभिन्न राज्यों में उपमुख्यमंत्रियों की नियुक्ति को असंवैधानिक कहते हुए रोक लगाने की मांग की.सुनवाई के दौरान सीजेआई (CJI) ने बताया. उपमुख्यमंत्री भी पहले एक मंत्री होता है. ये पद केवल लेबल यानि नाममात्र है. यह पद कोई अतिरिक्त लाभ नहीं देता है. इससे उपमुख्यमंत्री की नियुक्ति का संवैधानिक अर्थों में कोई महत्व नहीं है.
याचिकाकर्ता के वकील ने प्रत्युत्तर में कहा, उपमुख्यमंत्री नियुक्त करने की प्रक्रिया अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है. इसका आधार सिर्फ समाज के विभिन्न धर्म और समुदायों से होने के चलते है. इससे इतर अन्य कारण नहीं है. ऐसा करना संविधान के अनुच्छेद 14 और 51ए का उल्लंघन है.
कोर्ट ने मामले को खारिज किया. और कहा संविधान में ऐसा कोई पद निर्धारित नहीं है. उपमुख्यमंत्री, पहले राज्य में अन्य विभाग के मंत्री ही होते है. ये संवैधानिक पद का उल्लंघ नहीं है.
अनुच्छेद 14 में विधियों के समक्ष समानता एवं नियमों के संरक्षण की बात है. जिसे लेकर याचिकाकर्ता ने उपमुख्यमंत्री के पद को असंवैधानिक बताते हुए इस पर रोक लगाने की मांग की. वहीं, अनुच्छेद 51ए में भारत के नागरिकों का ये दायित्व है कि वे राज्य की संप्रभुता, एकता एवं अखण्डता को बरकरार रखने के निर्देश है. याचिका में उपमुख्यमंत्री बनाने के पीछे तर्क में कहा कि ये सिर्फ विशेष धर्म और जाति को लुभाने की कोशिश है. जिस पर रोक लगाने की जरूरत है. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस पद को असंवैधानिक करार देने से इंकार करते हुए इस याचिका को खारिज की.