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'शरीर के अंगों' वाले चुनाव चिन्ह को बैन करें, PIL को सुनने से सुप्रीम कोर्ट ने क्यों खड़े कर दिए 'हाथ'? 

सुप्रीम कोर्ट (AI Image)

Body Organ  को चुनावी सिंबल बनाने पर रोक लगाने की मांग वाली PIL खारिज करते हुए Supreme Court ने कहा कि इसका उद्देश्य केवल Congress पार्टी के सिंबल पर रोक लगाने की है. 

Written by Satyam Kumar |Published : August 6, 2024 10:34 AM IST

Ban On Using Body Organ As Poll Symbol: सुप्रीम कोर्ट ने शरीर के अंगों को चुनाव चिन्हों के तौर पर प्रयोग पर रोक लगाने की मांग करनेवाली जनहित याचिका (PIL) खारिज की. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस याचिका के पीछे अखिल भारतीय कांग्रेस के चुनावी सिंबल पर रोक लगाना है. ये जनहित याचिका एक गैर-सरकारी संगठन(NGO) ने दायर कर सुप्रीम कोर्ट से चुनाव आयोग को निर्देश देने की मांग की थी, जिसमें शरीर के अंगों का प्रयोग चुनावी सिंबल के तौर पर नहीं किया जाए.

याचिका का उद्देश्य कांग्रेस के सिंबल पर रोक लगाना है: CJI 

सुप्रीम कोर्ट में सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की पीठ के सामने इस जनहित याचिका को लाया गया. उन्होंने याचिका के पीछे की मंशा भांपते हुए कहा कि इसकाउद्देश्य कांग्रेस के चुनावी सिंबल 'हाथ' पर रोक लगाना है.

अदालत ने कहा, 

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"यह किस तरह की दलील है? कोई आंख नहीं, कोई नाक नहीं, कोई हाथ चुनाव प्रतीक नहीं हो सकता. खारिज. इरादा केवल हाथ के प्रतीक को रोकने का है."

सुप्रीम कोर्ट ने उक्त टिप्पणियों के साथ याचिका खारिज कर दी है.

याचिकाकर्ता ने किस आधार पर की ये मांग?

याचिका में कहा गया है कि मानव शरीर के अंगों से मिलते-जुलते प्रतीक संभावित रूप से चुनाव नियमों का उल्लंघन कर सकते याचिका में यह तय करने के लिए निर्देश देने की मांग की गई है कि

  1. क्या चुनाव आयोग मानव शरीर के अंगों को चुनाव चिन्ह के रूप में आवंटित कर सकता है और
  2. क्या ऐसा आवंटन भारत के संविधान के अनुच्छेद 324, जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, सामान्य खंड अधिनियम और चुनाव संचालन नियम का उल्लंघन करता है?

रगुजा सोसाइटी फॉर फास्ट जस्टिस द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि याचिकाकर्ता ने स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए मानव शरीर के अंगों से मिलते-जुलते या समान दिखने वाले पार्टी प्रतीकों के खिलाफ कई शिकायतें दर्ज की थीं और चुनाव आयोग द्वारा कोई कार्रवाई नहीं किए जाने के बाद उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया.

हालांकि, याचिकाकर्ता को सुप्रीम कोर्ट से राहत नहीं मिली. सुप्रीम कोर्ट ने याचिका खारिज की.