Kargil War: सुप्रीम कोर्ट ने 1999 के कारगिल युद्ध के दौरान कथित चूक के बारे में पूर्व सैन्य अधिकारी मनीष भटनागर की जनहित याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया है. अदालत ने कहा कि कोर्ट ने कहा कि राष्ट्रीय रक्षा मामले आंतरिक कार्यकारी निर्णय होते हैं. भटनागर ने दावा किया कि उन्होंने युद्ध से पहले घुसपैठ के बारे में विश्वसनीय जानकारी दी थी, लेकिन उसे नजरअंदाज कर दिया गया और बाद में असंबंधित आरोपों पर कोर्ट मार्शल का सामना करना पड़ा. आइये जानते हैं कि सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान क्या-कुछ हुआ...
मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना (CJI Sanjiv Khanna) और जस्टिस संजय कुमार की पीठ ने कहा, "1999 में युद्ध के दौरान जो हुआ, वह कार्यकारी निर्णयों से संबंधित आंतरिक मामला है." भटनागर ने दावा किया कि उन्होंने कारगिल घुसपैठ के बारे में विश्वसनीय जानकारी जनवरी-फरवरी 1999 में दी थी, लेकिन उसे नजरअंदाज कर दिया गया. उन्होंने यह भी कहा कि जब संघर्ष अपने चरम पर पहुंचा, तो उन्हें एक अन्य कारण से कोर्ट मार्शल कर सेना से बाहर कर दिया गया.
सीजेआई ने कहा कि हम हर चीज में हस्तक्षेप नहीं कर सकते हैं और हम ऐसा करेंगे तो ये गलत होगा. पीठ ने सैन्य अधिकारी से अनुरोध किया कि ऐसे में उन विषयों को यथावत रहने दें.
जिसके बाद, सैन्य अधिकारी भटनागर ने सुप्रीम कोर्ट के रूख को देखते हुए याचिका वापस लेने की इच्छा व्यक्त की, जिसे न्यायालय ने अनुमति दी.
पैराशूट रेजिमेंट की 5वीं बटालियन के भूतपूर्व अधिकारी भटनागर ने कारगिल युद्ध के दौरान घुसपैठ की पुष्टि के बाद ऑपरेशनों के संचालन पर सवाल उठाए। उन्होंने दावा किया कि उन्होंने जनवरी-फरवरी 1999 में घुसपैठ के बारे में अपने वरिष्ठ अधिकारियों को सूचित किया था, लेकिन उनकी जानकारी को नज़रअंदाज़ कर दिया गया। उन्होंने आरोप लगाया कि संघर्ष बढ़ने के बाद उन्हें झूठे बहाने से कोर्ट मार्शल किया गया और सेना छोड़ने के लिए मजबूर किया गया।
साल 1999 में पाकिस्तानी सेना ने भारत में घुसपैठ करने की कोशिश की थी, जिसे रोकने को लेकर भारतीय सेना ने जबावी हमला किया. इस युद्ध में भारतीय सेना ने पाकिस्तान को करारी पटखनी दी थी.
(खबर पीटीआई इनपुट पर आधारित है)