Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के उस फैसले को लेकर नाराजगी व्यक्त की है, जिसमें एक महिला न्यायिक अधिकारी के साथ कथित प्रेम-प्रसंग के कारण बर्खास्त किये गये न्यायिक अधिकारी को बहाल नहीं किया गया है, हालांकि शीर्ष अदालत ने 2022 में ही संबंधित बर्खास्तगी आदेश को खारिज कर दिया था. यह मामला 2009 से हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के बीच झूलता रहा है.
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस पी. बी. वराले की पीठ ने अपने हाल के आदेश में कहा कि शीर्ष अदालत ने 20 अप्रैल, 2022 को उच्च न्यायालय के 25 अक्टूबर, 2018 के उस आदेश को रद्द कर दिया था, जिसमें पुरुष न्यायिक अधिकारी की सेवा से बर्खास्तगी के खिलाफ उनकी याचिका खारिज कर दी गई थी. फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय की पूर्ण अदालत को न्यायिक अधिकारी को बर्खास्त करने संबंधी अपने फैसले पर पुनर्विचार करने का निर्देश दिया था.
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि 26 अक्टूबर, 2018 को उच्च न्यायालय की इसी खंडपीठ ने महिला न्यायिक अधिकारी की याचिका को स्वीकार कर लिया था और अवैध संबंध के आरोपों को गलत ठहराते हुए बर्खास्तगी आदेश को रद्द कर दिया था.
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने हाल में कहा,
‘‘जब एक बार बर्खास्तगी आदेश को (2022 में उच्चतम न्यायालय द्वारा) रद्द कर दिया जाता है और उक्त बर्खास्तगी आदेश को चुनौती देने वाली रिट याचिका को खारिज करने वाले उच्च न्यायालय के फैसले को भी रद्द कर दिया जाता है, तो स्वाभाविक परिणाम यह होना चाहिए कि कर्मचारी को सेवा में वापस ले लिया जाना चाहिए और फिर आगे की कार्यवाही निर्देशानुसार की जानी चाहिए.’
न्यायालय की पीठ ने कहा कि जब बर्खास्तगी आदेश को रद्द कर दिया जाता है तो कर्मचारी को सेवा में माना जाता है.
पीठ ने कहा,
‘‘अपीलकर्ता को सेवा में वापस लेने के बारे में न तो उच्च न्यायालय द्वारा और न ही राज्य द्वारा कोई निर्णय लिया गया और न ही बर्खास्तगी आदेश पारित होने की तिथि से लेकर सेवा में बहाल होने की तिथि तक बकाया वेतन के संबंध में कोई फैसला लिया गया.’’
इसने कहा कि न्यायिक अधिकारी 20 अप्रैल, 2022 के फैसले की तारीख से लेकर दो अप्रैल, 2024 को नया बर्खास्तगी आदेश पारित होने तक की अवधि के लिए पूर्ण वेतन पाने का हकदार होगा, जिसकी गणना अपीलकर्ता को निरंतर सेवा में मानते हुए सभी स्वीकार्य लाभों के साथ की जाएगी.
न्यायिक अधिकारी 2006 में पंजाब सिविल सेवा (न्यायिक शाखा) में शामिल हुए थे। दिसंबर 2006 में सेवा में शामिल होने के समय अपीलकर्ता पहले से ही शादीशुदा था। हालांकि, उनके वैवाहिक जीवन में अक्सर विवाद होते रहते थे. पीठ ने कहा कि स्थिति को और खराब होने से बचाने के लिए अपीलकर्ता ने सरकारी आवास छोड़ दिया और निजी आवास में चले गए. उनकी पत्नी और सास सरकारी आवास में ही रहती रहीं. नवंबर/दिसंबर 2008 में किसी समय न्यायिक अधिकारी की पत्नी ने एक महिला न्यायिक अधिकारी के साथ उनके संबंध के बारे में शिकायत की थी और साथ ही मारपीट के आरोप भी लगाये थे.