आज, शुक्रवार के दिन, सुप्रीम कोर्ट ने लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीट आरक्षित करने वाले ‘नारी शक्ति वंदन अधिनियम-2023 के खिलाफ दो याचिकाओं पर सुनवाई से इनकार किया है. सुनवाई के समय सुप्रीम कोर्ट कोर्ट ने मौखिक तौर पर कहा कि आर्टिकल 14 के तहत इस मामले में मौलिक अधिकारों के उल्लंघन का कोई सवाल नहीं है. अदालत ने स्पष्ट किया कि मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए अनुच्छेद 32 के तहत इस मामले में अब कोई याचिका स्वीकार नहीं की जाएगी. आइये जानते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में आगे क्या कहा...
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस पीबी वराले की पीठ ने मामले की सुनवाई की है. याचिकाकर्ता के वकील वरुण ठाकुर ने कहा कि उन्होंने नारी वंदन विधेयक को चुनौती दी थी, जो कि अब कानून बन चुका है. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को निरर्थक पाते हुए याचिका पर आगे सुनवाई से इंकार करते हुए इसे खारिज कर दिया है.
हालांकि, जस्टिस बेला त्रिवेदी ने याचिकाकर्ता से कहा कि अगर अधिनियम से किसी संविधान प्रदत अधिकारों का उल्लंघन होता है, तो वे इसे सक्षम हाईकोर्ट में चुनौती दे सकते हैं.
लोकसभा में अधिकतम सीट 543 है. नारी वंदन अधिनियम 2023 के लागू होने के बाद से 181 सीट महिलाओं के लिए आरक्षित हैं. वहीं राज्यों की विधानसभा में भी इस कानून के तहत महिलाओं के लिए 33% सीटें लागू की होगी. महिलाओं की भागीदारी को बढ़ाने वाले इस कानून को 19 सितंबर 2023 के दिन लोकसभा में पेश किया गया है. 20 सितंबर को राज्यसभा ने इस कानून को मंजूरी दी है. राज्यसभा से पारित होने के बाद राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इस कानून पर अपनी सहमति जताई है.
नारी वंदन अधिनियम, 2023 को राष्ट्रपति की मंजूरी मिल गई है, लेकिन इस कानून को प्रभावी होने में देरी है. इस कानून को आगामी जनगणना (Popular Census) के लागू होने के बाद पारित की जाएगी. साथ ही जनगणना होने के बाद नए सिरे से क्षेत्रों का परिसीमन किया जाएगा, जिसके बाद ही इस अधिनियम को लागू होना है.