नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने उस याचिका पर बृहस्पतिवार को विचार करने से इनकार कर दिया, जिसमें पंचायतों में महिलाओं के लिए सीटों के आरक्षण का मुद्दा उठाया गया है. याचिका में दावा किया गया है कि इन चुनावों में ‘प्रतिनिधि’ प्रक्रिया अपनाई जा रही है, जहां पुरुष महिलाओं की ओर से काम कर रहे हैं.
न्यायालय ने याचिकाकर्ता को पंचायती राज मंत्रालय को प्रतिवेदन देने की अनुमति दी. न्यूज एजेंसी भाषा के अनुसार, न्यायमूर्ति एस के कौल और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने याचिकाकर्ता, उत्तर प्रदेश के सामाजिक स्टार्ट-अप के वकील से कहा, ‘‘हम कोई कार्यकारी प्राधिकारी नहीं हैं.’’
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याचिकाकर्ता के वकील ने पीठ को बताया कि याचिका संविधान (73वां संशोधन) अधिनियम, 1992 से संबंधित है, जो ग्रामीण स्व-सरकारी निकायों में जमीनी स्तर पर महिलाओं के प्रतिनिधित्व से संबंधित है. वकील ने कहा कि विधायिका ने 30 साल पहले कानून पारित किया था, लेकिन कार्यपालिका इसे लागू करने में विफल रही है और शीर्ष अदालत इस मुद्दे को देखने के लिए एक समिति के गठन का निर्देश दे सकती है.
पीठ ने कहा, ‘‘आप कहते हैं कि यह प्रतिनिधि द्वारा किया जा रहा है. क्या हम महिलाओं को चुनाव लड़ने से रोक सकते हैं?’’
शीर्ष अदालत ने याचिकाकर्ता के वकील से पूछा कि क्या उन्होंने इस बारे में किसी सरकारी विभाग को कोई प्रतिवेदन दिया है. पीठ ने कहा कि याचिका में उठाये गये मुद्दे का कोई समाधान नहीं है, या कोई समाधान प्रस्तावित नहीं है.
पीठ ने कहा, ‘‘हमारा मानना है कि यह अदालत का कार्य नहीं है. हमें लगता है कि याचिकाकर्ता की शिकायत पर गौर करना प्रतिवादी- पंचायती राज मंत्रालय का काम है.’’ उच्चतम न्यायालय ने याचिका का निपटारा करते हुए याचिकाकर्ता को इस मुद्दे पर मंत्रालय को प्रतिवेदन देने की अनुमति दी.