सुप्रीम कोर्ट ने स्पेशल फ्रंटियर फोर्स के अनिवार्य बचत योजना जमा (Saving Scheme Deposits) फंड के कई कर्मचारियों को पेंशन लाभ सहित छठे केंद्रीय वेतन आयोग के लाभ दिए हैं.. 2017 में, दिल्ली उच्च न्यायालय ने छठे वेतन आयोग की रिपोर्ट के अनुसार संशोधित वेतन नियम, 2008 के लाभों के लिए अपीलकर्ताओं के दावे को खारिज करने वाले केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण के फैसले को बरकरार रखा था, जिसे बदलते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कर्मचारियों को छठवें वेतन नियम के लाभ देने के निर्देश दिए हैं.
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस हिमा कोहली और संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि अपीलकर्ताओं को पेंशन लाभ देने से इनकार करना कानून की नजर में उचित या न्यायोचित नहीं है क्योंकि यह मनमाना है और भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 द्वारा गारंटीकृत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है. सर्वोच्च न्यायालय ने रिकॉर्ड पर ऐसे पुख्ता सबूत पाए जो यह स्थापित करते हैं कि अपीलकर्ता नियमित सरकारी कर्मचारियों की विशेषताओं को पूरा करते हैं. साथ ही अपीलकर्ताओं को उनकी सेवा के दौरान अन्य सरकारी कर्मचारियों के बराबर वेतन वृद्धि और पदोन्नति मिली.
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि अपीलकर्ताओं की तीन दशकों से अधिक की लंबी सेवा से सरकारी ढांचे में स्थायित्व प्रदान की है जो अस्थायी कर्मचारियों के रूप में उनके वर्गीकरण को खारिज करता है.
अदालत ने कहा,
"रोजगार का सार और उसके अधिकार केवल नियुक्ति की प्रारंभिक शर्तों से निर्धारित नहीं किए जा सकते, जब रोजगार मिले काफी अरसा बीत चुका हो,"
सर्वोच्च न्यायालय ने आदेश दिया कि प्रतिवादियों (प्राधिकारियों) को संशोधित वेतनमान नियम, 2008 के तहत पेंशन लाभ सहित छठे केंद्रीय वेतन आयोग के लाभ अपीलकर्ताओं को उसी तरह प्रदान करने का निर्देश दिया जाता है, जैसे उनके साथियों को दिए जा रहे हैं.
अपीलकर्ताओं को अर्धसैनिक बल ( paramilitary force) की अनिवार्य बचत योजना जमा निधि का प्रबंधन करने के लिए नियुक्त किया गया था, जो जवानों के व्यक्तिगत योगदान से वित्तपोषित एक कल्याणकारी पहल है, जो जूनियर अकाउंटेंट, अकाउंटेंट, अपर डिवीजन क्लर्क (UDC) और लोअर डिवीजन क्लर्क (LDC) जैसे विभिन्न पदों पर चल रहे वेतनमानों पर कार्यरत है. हालांकि, उन्हें छठे केंद्रीय वेतन आयोग का लाभ नहीं दिया गया और इसके बजाय, 3,000 रुपये प्रति माह की तदर्थ राशि दी गई. उन्हें इस आधार पर पेंशन लाभ से वंचित कर दिया गया कि अपीलकर्ता सरकारी कर्मचारी नहीं थे और किसी भी भर्ती नियमों का पालन करके उनकी नियुक्ति नहीं की गई थी, और इसलिए, केंद्रीय सिविल सेवा (पेंशन) नियम, 1972 उन पर लागू नहीं होंगे.
हाईकोर्ट के समक्ष दायर अपनी याचिका में, अपीलकर्ताओं ने तर्क दिया कि वे नियमित सरकारी कर्मचारियों की सभी विशेषताओं को पूरा करते हैं, इस तथ्य पर विचार करते हुए कि उन्हें नियमित वेतनमान पर नियुक्त किया गया था और उन्हें अन्य सरकारी कर्मचारियों के समान वेतन वृद्धि और पदोन्नति मिली थी, साथ ही छुट्टी और अन्य लाभ मिले.
दूसरी ओर, अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज ने तर्क दिया कि अपीलकर्ताओं को एसएसडी फंड का प्रबंधन करने के लिए अस्थायी आधार पर काम पर रखा गया था, जो निवेश की गई राशि पर अर्जित ब्याज और ग्राहकों को दिए जाने वाले वार्षिक ब्याज के बीच के अंतर से उत्पन्न होता है.