सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने मणिपाल हॉस्पीटल को 10 लाख का मुआवजा (10 Lakh Compensation) देने का आदेश दिया है. मणिपाल हॉस्पीटल (Manipal Hospital) को ये मुआवजा मृतक की पत्नी को देना पड़ेगा. कोर्ट ने ये आदेश इलाज के दौरान लापरवाही बरतने के लिए दिया है. हॉस्पीटल में इलाज के दौरान मरीज को एक प्रशिक्षु डॉक्टर द्वारा एनेस्थीसिया (Anaesthesia) दी गई जिसका मरीज की आवाज के ऊपर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा.
जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की बेंच ने इस मामले की सुनवाई की. सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि इलाज के दौरान एनेस्थीसिया, विभाग के अनुभवी डॉक्टरों द्वारा दिया जाना चाहिए. कोर्ट ने तथ्यों की जांच में पाया कि एनेस्थीसिया देने का कार्य एक प्रशिक्षु को सौंपा गया था. जांच के दौरान लापरवाही साफ दिखाई पड़ती है.
मरीज ने एफआईआर दर्ज कराते समय अपने बाएं फेफड़े के ऑपरेशन के दौरान बरती गई लापरवाही के लिए अस्पताल से 18 लाख रूपये की मांग की. मामले की सुनवाई जिला उपभोक्ता फोरम (District Consumer Forum) में हुई. उपभोक्ता फोरम ने 50,000 रूपये का मुआवजा तय किया. मामले को आगे चुनौती दी गई, तो राष्ट्रीय उपभोक्ता निवारण आयोग (National Consumer Redressal Commission) ने इस मुआवजे की राशि को बरकरार रखा. इस दौरान मरीज की मृत्यु हो गई. और मृतक मरीज की पत्नी ने राष्ट्रीय उपभोक्ता निवारण आयोग के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी.
सुप्रीम कोर्ट ने परिस्थितियों और तथ्यों पर विचार करके मुआवजे को उचित नहीं पाया. कोर्ट ने मणिपाल हॉस्पीटल को एक महीने के अंदर मरीज की विधवा पत्नी को 10 लाख रूपये का मुआवजा देने का आदेश दिया है. कोर्ट ने इस बात पर जोड़ देते हुए कहा कि यह मामला एनसीडीआरसी (NCDRC) के समक्ष लंबित रहने के दौरान अपीलकर्ता की मृत्यु हो गई है. ऐसे में इस मामले को वापस भेजने से कोई उपयोगी उद्देश्य पूरा नहीं होगा.