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डिटेशन सेंटर में रखने की जगह 'केन्द्र' वापस भेज क्यों नहीं भेज रहा? बंग्लादेशी घुसपैठियों के मामले पर सुप्रीम कोर्ट सख्त

सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल के सुधार गृहों में सजा काटने के बाद रह रहे बांग्लादेशी नागरिकों की अनिश्चितकालीन हिरासत पर चिंता व्यक्त की. सुप्रीम कोर्ट ने छह फरवरी तक सुनावई टालते हुए राष्ट्रीयता सत्यापन में देरी और लंबे समय तक हिरासत में रखने की वैधता के बारे में केंद्र सरकार से स्पष्टीकरण मांगा है.

रोहिंग्या बंग्लादेशी सुप्रीम कोर्ट

Written by Satyam Kumar |Published : February 3, 2025 8:15 PM IST

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल के सुधार गृहों (Detention Centre) में रह रहे बांग्लादेशी घुसपठियों की लंबे समय तक हिरासत को लेकर केन्द्र से नाराजगी जाहिर की है. 30 जनवरी को सुनवाई के दौरान, अदालत ने केन्द्र सरकार से सवाल किया कि अवैध प्रवासियों को सुधार गृहों में रखने का क्या औचित्य है, जबकि उन्होंने अपनी सजा पूरी कर ली है. अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि राष्ट्रीयता की पुष्टि की प्रक्रिया पहले या सजा के दौरान क्यों नहीं की जाती, ताकि जेल से रिहा होने के बाद तुरंत निर्वासन किया जा सके.

बंग्लादेशी घुसपैठियों को वापस भेजने का मामला

30 जनवरी को दिए गए आदेश में, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ ने केंद्र सरकार से बांग्लादेशी नागरिकों की लंबे समय तक हिरासत के बारे में जवाब मांगा. अदालत ने सवाल उठाया कि जब एक अवैध प्रवासी को दोषी ठहराया जा चुका है, तो उसे अनिश्चितकाल के लिए सुधार गृहों में क्यों रखा जा रहा है.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा,

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"हम जानना चाहते हैं कि एक बांग्लादेशी अवैध प्रवासी को जब दोषी ठहराया जा चुका है, तो क्या यह स्थापित नहीं होता कि वह भारत का नागरिक नहीं है. ऐसे सैकड़ों अवैध प्रवासियों को सुधार गृहों में अनिश्चितकाल तक क्यों रखा जा रहा है?"

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल सरकार को नोटिस जारी करते हुए पूछा है कि क्या वे भी इस मामले में कोई पार्टी है. सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र और बंगाल सरकार से घुसपैठियों को हिरासत में रखने और उन्हें वापस भेजने के लिए की जा रही कार्रवाई पर जबाव की मांग की है. शीर्ष अदालत ने दोनों पक्षों को हलफनामा के माध्यम से छह फरवरी तक अपना जबाव रखने को कहा है.

क्या है मामला?

सुप्रीम कोर्ट का ये निर्देश बंग्लादेशी घुसपैठियों की डिटेशन से जुड़ी जनहित हित की याचिका (PIL) पर आया, जिसे कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव (CHRI) के माजा दरूवाला और अन्य द्वारा दायर किया गया है. यह मुद्दा पहली बार 2011 में सामने आया जब CHRI ने कलकत्ता हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को एक पत्र लिखा, जिसमें बताया गया कि बांग्लादेशी नागरिक, जो विदेशी अधिनियम, 1946 के तहत दोषी ठहराए गए थे, उन्हें उनकी सजा पूरी करने के बाद भी वापस नहीं भेजा जा रहा है. इसके बजाय, उन्हें प्रशासनिक देरी के कारण सुधार गृहों में अनिश्चितकाल तक रखा गया है. कुछ समय के बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को अपने पास ट्रांसफर कर लिया.

अब तक की सुनवाई में अदालत ने 2009 में गृह मंत्रालय द्वारा जारी एक सर्कुलर का भी उल्लेख किया, जिसमें कहा गया था कि बांग्लादेशी नागरिकों की नागरिकता की जांच 30 दिनों के भीतर पूरी की जानी चाहिए. अदालत ने सरकार से पूछा कि इस प्रावधान का पालन क्यों नहीं किया जा रहा है.

अदालत ने यह भी बताया कि जब यह मामला 2011 में दायर किया गया था, तो 850 से अधिक बांग्लादेशी नागरिक सुधार गृहों में थे, भले ही उन्होंने अपनी सजा पूरी कर ली हो. सुप्रीम कोर्ट ने अवैध नागरिकों के आंकड़े को बताने के निर्देश दिए हैं.

(खबर एजेंसी इनपुट के आधार पर है)