पोलिंग बूथ पर वोटर्स की निर्धारित संख्या 1200 से 1500 करने के चुनाव आयोग के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने आज सुनवाई की. सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को हलफनामा दाखिल करने का निर्देश देते हुए कहा कि हमारी चिंता इस बात को लेकर है कि वोटरों को परेशानी न हो. चुनाव आयोग की ओर से पेश वकील मनिंदर सिंह ने याचिका पर सवाल उठाते हुए कहा कि राजनीतिक दलों से बाकायदा विचार विमर्श कर ये फैसला लिया गया है. अब सुप्रीम कोर्ट इस याचिका पर 27 जनवरी को कोर्ट आगे सुनवाई करेगा.
सुप्रीम कोर्ट में सीजेआई संजीव खन्ना और जस्टिस संजय की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए हुए चुनाव आयोग को हलफनामा के माध्यम से अपना पक्ष रखने को कहा है. आज की सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग ने पीठ को बताया कि हमने वोटर्स की संख्या 1200 से 1500 करने का फैसला लेने से पहले राजनीतिक पार्टियों से सलाह-मशवरा किया था, उन्होंने इस फैसले कोई आपत्ति नहीं जताई.
CJI संजीव खन्ना ने चुनाव आयोग से पूछा कि यदि एक मतदान केंद्र पर 1500 से अधिक लोग पहुंचते हैं तो स्थिति को कैसे संभाला जाएगा. इस पर चुनाव आयोग की ओर से सीनियर एडवोकेट मनिंदर सिंह ने तर्क दिया कि मतदान केंद्र 2019 से बढ़ते मतदाताओं की संख्या को समायोजित कर रहे हैं. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई को 27 जनवरी तक स्थगित करते हुए चुनाव आयोग को हलफनामा के माध्यम से अपना पक्ष रखने को कहा है.
इंदु प्रकाश सिंह द्वारा दायर जनहित याचिका (PIL) में चुनाव आयोग के फैसले को चुनौती दी गई है, जिसमें चुनाव आयोग ने पोलिंग बूथ पर वोटर्स की संख्या 1200 से 1500 करने का फैसला लिया है. सिंह ने प्रति मतदान केंद्र मतदाताओं की संख्या बढ़ाने के निर्णय को मनमाना और डेटा रहित बताया है. याचिकाकर्ता ने कहा कि मतदाताओं की संख्या 1,200 से 1,500 करने से वंचित समूह चुनावी प्रक्रिया से बाहर हो जाएंगे और चुनाव आयोग के इस फैसले का असर महाराष्ट्र, झारखंड, बिहार और दिल्ली विधानसभा चुनावों पर पड़ेगा. एक मतदान केंद्र पर एक दिन में 660 से 490 मतदाता वोट डाल सकते हैं, जिससे लंबी कतारें बन सकती हैं. याचिका में कहा गया है कि 20 प्रतिशत मतदाता लंबी प्रतीक्षा के कारण अपने मताधिकार का प्रयोग नहीं कर पाएंगे.