पिता अपने बच्चे के लिए क्या-क्या नहीं करते हैं या कभी- कभी यूं लगता है कि पिता जो भी करते हैं, बच्चों के लिए ही करते हैं. सड़क दुर्घटना का मामला बेहद शॉक करने वाला है. इसमें एक लड़के की कार से एक स्कूटी सवार दंपत्ति को टक्कर लग गया. इस सड़क दुर्घटना में दंपत्ति की मृत्यु हो गई, साथ ही जा रही बच्ची को गंभीर चोटें आई, लेकिन उसकी जान बच गई. घटना की खबर होते हुए पुलिस मौके पर पहुंची आरोपी लड़के को गिरफ्तार किया. उसके खिलाफ FIR दर्ज की और आगे की जांच में तत्परता से जुट गई. वहीं लड़के के पिता ने बेटे को छुड़ाने के लिए एड़ी-चोटी का जोड़ लगाया. ट्रायल कोर्ट, फिर बॉम्बे हाई कोर्ट और उसके बाद सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचे. अब सुप्रीम कोर्ट ने एक शर्त रखा कि अगर वह अनाथ हुई बच्ची को एक करोड़ का मुआवजा देने को तैयार होते हैं, तो उनके बच्चे को जमानत दी जा सकती है. आइये जानते हैं इस पूरे घटनाक्रम को....
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस जेके माहेश्वरी की खंडपीठ ने बॉम्बे उच्च न्यायालय के एक आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई की. बॉम्बे हाई कोर्ट ने सड़क दुर्घटना के आरोपी जय चंद्रहास घरात की जमानत देने इंकार कर दिया था. कार्यवाही के दौरान, याचिकाकर्ता के पिता ने सुप्रीम कोर्ट को आश्वासन दिया कि वह सड़क दुर्घटना में पैरेंट्स को खोने वाले बच्ची की इलाज और उनकी भलाई की व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदारी ले रहे हैं. आरोपी लड़के के पिता ने तुरंत एक राष्ट्रीयकृत बैंक में 50 लाख रुपये और दो किस्तों में बचा 50 लाख रुपये जमा करने का भी वादा किया.
सुप्रीम कोर्ट ने अनाथ हुए बच्चों के चाचा से बात की, पैरेंट्स के देहांत के बाद से वे उन्हीं के साथ रह रहे हैं. यह बताया गया कि बच्चे अपने चाचा के साथ रह रहे थे और वह अभी हाई स्कूल में पढ़ रहे हैं. अदालत को सूचित किया गया कि चाचा पहले से ही उनके स्कूल का खर्च उठा रहे थे, जो कि प्रति बच्चा सालाना 25,000 रुपये है. मौजूद याचिकाकर्ता के पिता ने इन खर्चों को स्वीकार करते हुए कहा कि वह बच्चों की शिक्षा और जीवन-यापन के खर्च के लिए अगले छह महीनों तक अपनी स्वेच्छा से ₹25,000 प्रति माह का देने को तैयार है.
सुप्रीम कोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनते हुए पिता की गुजारिश के बाद लड़के को अंतरिम जमानत दे दी है, जिस दौरान पिता को अपने वादे को पूरा करना है. जिसे पूरा करने के बाद आरोपी लड़के की अंतरिम जमानत, रेगुलर बेल में तब्दील हो जाएगी. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस और जिला विधिक सेवा प्राधिकरण को बच्चों की भलाई की निगरानी करने और उनकी शिक्षा, स्वास्थ्य और समग्र स्थिति पर नियमित रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है.
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ता के पिता द्वारा पेश की गई और जमा की गई राशि बच्चों के कल्याण के लिए मुआवज़े की राशि है, चाहे आपराधिक मामले या अन्य कार्यवाही का परिणाम कुछ भी हो. अब सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई 23 मई को तय की है.
अप्रैल 2024 में हुई एक दुर्घटना से जुड़े आरोप तब सामने आए जब क्रेटा कार चला रहे याचिकाकर्ता ने एक स्कूटर को टक्कर मार दी जिसमें अब मृतक दंपति और उनकी बेटी यात्रा कर रहे थे. दंपति ने मौके पर ही दम तोड़ दिया, जबकि उनकी बेटी को गंभीर चोटें आईं. पुलिस ने सड़क दुर्घटना के इस आरोपी पर भारतीय दंड संहिता की धारा 201 (साक्ष्य मिटाने), 279 (सार्वजनिक रास्ते पर तेज गति से वाहन चलाना), 304 (हत्या के बराबर न होने वाली गैर इरादतन हत्या), 304(2) (जानबूझकर लेकिन बिना इरादे के गैर इरादतन हत्या), 338 (जीवन या व्यक्तिगत सुरक्षा को खतरे में डालने वाले कृत्य से गंभीर चोट पहुंचाना), 353 (लोक सेवक को कर्तव्य से रोकने के लिए हमला या आपराधिक बल का प्रयोग), और 504 (शांति भंग करने के लिए जानबूझकर अपमान) के साथ-साथ मोटर वाहन अधिनियम की सुसंगत धाराओं में मुकदमा दर्ज किया गया है.