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'इलाहाबाद हाईकोर्ट का रवैया चिंताजनक', SC ने अब्बास अंसारी की याचिका पर सुनवाई में देरी से होने पर जताई नाराजगी

सुप्रीम कोर्ट की ये टिप्पणी विधायक अब्बास अंसारी की याचिका पर आया है जिसमें आरोप लगाया है कि उनकी प्लॉट से जुड़े विवाद को लेकर दायर अर्जी हाई कोर्ट में लंबे वक़्त से पेंडिंग है, उस पर सुनवाई नहीं हो पा रही है.

इलाहाबाद हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट

Written by Satyam Kumar |Published : January 9, 2025 1:51 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने यूपी के एमएलए अब्बास अंसारी की प्रॉपर्टी विवाद से जुड़ी एक याचिका पर इलाहाबाद हाई कोर्ट में सुनवाई न होने पर असंतोष जाहिर किया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम नहीं जानते कि सुनवाई क्यों नहीं हो पा रही पर इस मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट जैसे कुछ हाईकोर्ट का रवैया चिंताजनक है.

अब्बास अंसारी ने अर्जी दायर कर आरोप लगाया है कि उनकी प्लॉट से जुड़े विवाद को लेकर दायर अर्जी हाई कोर्ट में लंबे वक़्त से पेंडिंग है, उस पर सुनवाई नहीं हो पा रही है. वही इस तरह की याचिका दाखिल करने वाले दूसरे लोगों को सुनकर हाई कोर्ट राहत भी दे चुका है.

सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट से कहा है कि वो अब्बास अंसारी की याचिका पर जल्द सुनवाई करें. कोर्ट ने कहा कि चूंकि ऑथोरिटी ने प्लॉट पर कंस्ट्रक्शन शुरू कर दिया है, इसलिए जब तक हाईकोर्ट सुनवाई नहीं कर लेता तब तक हम यथास्थिति बनाये रखने का निर्देश दे रहे है. इस दरम्यान वहां अब्बास अंसारी या सरकार की ओर से कोई कार्रवाई नहीं होगी.

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अब्बास अंसारी की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद, इलाहाबाद उच्च न्यायालय में उनके मामले की सुनवाई नहीं हो रही है. उन्होंने यह भी कहा कि अन्य सह-मालिकों को अंतरिम राहत मिली है, जबकि अब्बास की याचिका पर कोई सुनवाई नहीं हुई.

अब्बास अंसारी का कहना है कि उनके दादा ने 2004 में एक संपत्ति खरीदी थी, जिसे बाद में उनकी पत्नी को उपहार में दिया गया था. 2020 में, एक उप-जिला मजिस्ट्रेट ने इस संपत्ति को एक्वीज़ी प्रॉपर्टी घोषित कर दिया है और इस फैसले को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है.

इससे पहले भी इलाहाबाद  हाईकोर्ट में एक हत्या के आरोपी की जमानत याचिका चार वर्षों से लंबित होने की खबर ने सुप्रीम कोर्ट को चौंका दिया था, जिसे सुनवाई कर रहे जज ने इस मामले को हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के संज्ञान में लाने का आदेश दिया. यह स्थिति न्यायिक प्रणाली की कार्यक्षमता पर सवाल उठाती है.