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ऑफिस के सामान्य विवाद को 'अपराध' बनाने की कोशिश... सुप्रीम कोर्ट ने कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के मामले को किया खारिज

सुप्रीम कोर्ट ने महिला द्वारा किए गए Sexual Harassment at Workplace मामले को खारिज करते हुए कहा कि इस्तीफे और टर्मिनेशन के मामले सिविल प्रकृति के हैं. शिकायतकर्ता द्वारा आपराधिक कार्यवाही केवल कंपनी और आवेदकों पर दबाव डालने के लिए शुरू की गई है, जिससे वह अनुचित मौद्रिक लाभ प्राप्त कर सके.

सुप्रीम कोर्ट, वर्कप्लेस पर यौन उत्पीड़न (AI Image)

Written by Satyam Kumar |Published : January 27, 2025 6:00 PM IST

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने 24 जनवरी को एक महिला कर्मचारी द्वारा अपने सहयोगियों के खिलाफ दायर कार्यस्थल उत्पीड़न के मामले को खारिज कर दिया है. अदालत ने कहा कि अपीलकर्ताओं (आरोपी) के खिलाफ की गई कार्यवाही को जानबूझकर गैर-संज्ञेय से संज्ञेय प्रकृति का बनाने प्रयास था. यह प्रयास संभवतः अपीलकर्ताओं पर दबाव डालने के लिए किया गया था ताकि वे शिकायतकर्ता के साथ विवाद का समाधान करें. वहीं, शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि अपीलकर्ताओं ने उसे इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया, उसके सामान को जब्त कर उसे बुरा-भला कहा था. उसने यह भी दावा किया कि उसके कंपनी के लैपटॉप पर उसकी इंटैलेक्चुअल प्रॉपर्टी को अवैध रूप से जब्त किया गया.

मुकदमे के सहारे अनुचित लाभ पाने का प्रयास हुआ: SC

जस्टिस दीपंकर दत्ता और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा ने कहा कि हमने मामले की पूरी जांच की है और पाया है कि शिकायत में किसी भी अपराध के लिए आवश्यक तत्व मौजूद नहीं हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक हाई कोर्ट के निर्णय को रद्द करते हुए कहा कि अपीलकर्ताओं को गलत तरीके से आरोपी बनाया गया था. अदालत ने रिकॉर्ड देखते हुए कहा कि महिला द्वारा दर्ज कराई गई FIR, उसे नौकरी से निकाले जाने के बाद की गई थी.

अदालत ने कहा कि शिकायतकर्ता द्वारा दायर FIR और चार्जशीट में आवेदकों के खिलाफ कोई प्रथम दृष्टतया मामला (Prima Facie Case) नहीं दिखाया गया है. आवेदकों के अनुसार, चार्जशीट में आईपीसी की धाराओं 323, 504, 506, 509, और 511 के तहत अपराधों के आवश्यक तत्वों का उल्लेख नहीं है, भले ही इसे सत्य माना जाए. दूसरा, शिकायत में लगाए गए आरोप सामान्य प्रकृति के हैं और इनमें आवेदकों की संलिप्तता को स्पष्ट नहीं किया गया है. दूसरा कि आरोपी (अपीलकर्ता) ने यह स्पष्ट किया है कि वह कथित घटना की तारीख को कार्यालय में उपस्थित नहीं था, इसलिए उसे आरोपों में कोई विशिष्ट भूमिका नहीं दी गई है. तीसरा, इस्तीफे और टर्मिनेशन के मामले सिविल प्रकृति के हैं. शिकायतकर्ता द्वारा आपराधिक कार्यवाही केवल कंपनी और आवेदकों पर दबाव डालने के लिए शुरू की गई है, जिससे वह अनुचित पैसे मांग सके. चौथे, FIR में लगाए गए आरोप इतने बेतुके और स्वाभाविक रूप से असंभव हैं कि कोई भी सामान्य व्यक्ति इन आरोपों के आधार पर आवेदकों के खिलाफ कार्यवाही करने के लिए पर्याप्त आधार नहीं बना सकता.

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क्या है मामला?

25 अक्टूबर 2013 के दिन शिकायतकर्ता (महिला), जो कि टेक्नीकल एनालिस्ट थी, ने अपने नियोक्ता जूनिपर नेटवर्क्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के खिलाफ उत्पीड़न का आरोप लगाया. महिला ने दावा किया कि उसे कंपनी के एचार मैनेजर की ओर से दबाव बनाया गया कि अगर उसने इस्तीफा नहीं दिया, तो उसे टर्मिनेट कर दिया जाएगा. इसके अलावा, पहले आरोपी ने शिकायतकर्ता को काम पर वापस आने से मना कर दिया और उसके व्यक्तिगत सामान, जैसे लैपटॉप, बैग, वॉलेट आदि को जब्त कर लिया. वहीं, लैपटॉप में उसके द्वारा बनाए गए  कोड बौद्धिक संपदा (Intellectual Property) और अन्य कार्य शामिल थे. महिला ने दावा किया कि उसे गंदी भाषा में डांटते हुए और सुरक्षा कर्मियों की सहायता से उसे कंपनी के परिसर से बाहर निकालने का प्रयास किया.

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