सुप्रीम कोर्ट ने एक 'आदतन अपराधी' नाबालिग को ज़मानत देते से इनकार करते हुए कहा कि आरोपी के साथ केवल इस आधार पर नरमी नहीं बरती जा सकती कि वो नाबालिग है. जस्टिस जेबी पारदीवाला ने कहा कि आरोपी के ऊपर लूटपाट के 4 मामले हैं और उसके व्यवहार में कोई सुधार नहीं है. नाबालिग को भी अपनी हरकतों के नतीजों को समझना चाहिए. नाबालिग होने के नाम पर वह लोगों को लूटता नहीं रह सकता. वास्तव में उसके साथ नाबालिग जैसा व्यवहार होना ही नहीं चाहिए था. ये गंभीर अपराध हैं और हर बार नाबालिग होने के नाम पर आरोपी बच निकलते हैं. इससे पहले राजस्थान हाई कोर्ट ने भी आरोपी की ज़मानत याचिका खारिज कर दी थी. सुप्रीम कोर्ट ने ज़मानत देने से इनकार करते हुए 4 महीने में ट्रायल पूरा करने का निर्देश दिया है.
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की खंडपीठ ने जमानत याचिका पर सुनवाई की. अदालत ने उसके कृत्यों देखकर उम्र के आधार पर जमानत देने से इंकार किया है. इस मामले में नाबालिग पिछले एक साल आठ महीने से जेल में बंद हैं और लगातार जमानत के लिए प्रयास कर रहा है. अदालत ने पाया कि आरोपी के खिलाफ धाराएं भी तय की गई हैं, घटना के चश्मदीदों को भी गवाही के लिए बुलाया गया. लेकिन वह अदालत के सामने पेश होने में नाकाम रहे. गवाही के सामने न आने की समस्या पर कोर्ट ने कहा कि यह याचिकाकर्ता के स्पीडी ट्रायल के अधिकार से जुड़ा है. जुवेनाइल कोर्ट यह सुनिश्चित कराएं कि अभियोजन पक्ष गवाहों को पेश करे. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने जमानत खारिज करते हुए कहा कि ट्रायल कोर्ट चार महीने के भीतर सुनवाई पूरी करें, अगर जरूरत पड़े तो मामले को डे-टू-डे बेसिस पर सुन सकते हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने उक्त निर्देशों के साथ आरोपी को जमानत देने से इंकार किया है.