Advertisement

'मेरे बेटे के बिना नहीं जी सकती तो मर जाओ', SC ने आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में आरोपी महिला को किया बरी

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोई महिला, किसी को कहती है कि यदि वह अपने प्रेमी से शादी नहीं कर सकती तो उसे जीवित नहीं रहना चाहिए, तो यह भी उकसाने के स्तर पर नहीं आता. साथ ही अदालत ने महिला के खिलाफ आरोपों को साबित करने के लिए स्पष्ट सबूतों में कमी पाया है.

Written by Satyam Kumar |Published : January 21, 2025 7:41 PM IST

आज सुप्रीम कोर्ट ने एक महिला के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने के अपराध का मामला खारिज कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोई महिला, किसी को कहती है कि यदि वह अपने प्रेमी से शादी नहीं कर सकती तो उसे जीवित नहीं रहना चाहिए, तो यह भी उकसाने के स्तर पर नहीं आता. सुप्रीम कोर्ट ने ये बातें महिला की अपील पर सुनवाई करते कहीं, जिसमें कोलकाता उच्च न्यायालय ने आईपीसी की धारा 306 और 107 के तहत दर्ज FIR को खारिज करने से इनकार किया था. बता दें कि महिला के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला इसलिए दर्ज कराया गया था क्योंकि उसने अपने बेटे की प्रेमिका से कहा था कि वह उसके बेटे के बिना नहीं जी सकती है तो उसे मर जाना चाहिए.

जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस एससी शर्मा की पीठ ने इस मामले की सुनवाई की. सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के निर्णय को आंशिक रूप से खारिज करते हुए कहा कि महिला के कार्य, जो उसके बेटे की शादी को अस्वीकार करने और प्रेमिका को आत्महत्या के लिए उकसाने के लिए कहने के बीच बहुत दूर हैं, धारा 306 IPC के तहत अपराध नहीं बनाते.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उपर्युक्त सभी तत्व इस मामले में अनुपस्थित थे. रिकॉर्ड से यह स्पष्ट होता है कि महिला और उसके परिवार ने मृतक पर किसी भी प्रकार का दबाव नहीं डाला. वास्तव में, मृतका का परिवार भी इस रिश्ते से नाखुश था. कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि महिला ने मृतक के विवाह के प्रति असहमति व्यक्त की, तो यह आत्महत्या के लिए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष उकसाने के स्तर तक नहीं पहुंचता.

Also Read

More News

इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर आईपीसी की धारा 306 को धारा 107  के साथ पढ़ने पर यह स्पष्ट होता है कि आत्महत्या के लिए उकसाने के लिए तीन तत्वों की जरूरत होती है, जिसमें आरोपी द्वारा किसी को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उकसाना, दूसरा उसके उकसाने और आत्महत्या में निकटता में होने के साथ ही आत्महत्या के लिए उकसाने का स्पष्ट इरादा होना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में इन चीजों का अभाव पाते हुए महिला को बरी करने का फैसला सुनाया है.