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कस्टमर के मोबाइल पर अश्लील मैसेज आने का मामला, FIR बरकरार रखते हुए SC ने एयरटेल CEO को किया बरी

फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उच्च न्यायालय ने यह सोचने का प्रयास नहीं किया कि मोबाइल सेवा प्रदाता के CEO को शिकायतकर्ता को अश्लील संदेश भेजने के लिए कैसे जिम्मेदार ठहराया जा सकता है.

सुप्रीम कोर्ट, एयरटेल लोगो

Written by Satyam Kumar |Published : January 18, 2025 6:46 PM IST

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने भारती एयरटेल के पूर्व मुख्य कार्यकारी अधिकारी (CEO) के खिलाफ चल रहे आपराधिक मामलों में बड़ी राहत दी है. सीईओ के खिलाफ यह मामला एक वकील की शिकायत पर दर्ज किया गया है. वकील ने कंपनी पर आरोप लगाया था कि उसके एयरटेल नंबर पर लगातार 'अश्लील' मैसेज आ रहे थे. सुप्रीम कोर्ट, मद्रास हाई कोर्ट की आलोचना की, जिसने पहले अपीलकर्ता के खिलाफ एफआईआर रद्द करने की मांग याचिका को खारिज कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उच्च न्यायालय ने यह सोचने का प्रयास नहीं किया कि मोबाइल सेवा प्रदाता के CEO को शिकायतकर्ता को अश्लील संदेश भेजने के लिए कैसे जिम्मेदार ठहराया जा सकता है.

जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिस्वर सिंह की पीठ ने भारती एयरटेल के सीईओ को बरी करते हुए प्राथमिकी (FIR) को जांच के उद्देश्य से बरकरार रखा है, जिससे अश्लील मैसेज के लिए जिम्मेदार व्यक्ति की जबावदेही तय हो. शीर्ष अदालत ने सवाल उठाया कि कैसे एक CEO को इस प्रकार के अपराध के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 

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 "प्रभावित FIR संख्या 11/2011... और इससे उत्पन्न सभी प्रक्रियाएं अपीलकर्ता (एयरटेल सीईओ) के खिलाफ समाप्त की जाती हैं."

फिर भी सुप्रीम कोर्ट ने FIR को बरकरार रखते हुए, केंद्रीय अपराध शाखा, साइबर अपराध सेल, चेन्नई को आगे की जांच का निर्देश दिया गया है ताकि उन व्यक्तियों या एजेंसियों का पता लगाया जा सके जो अश्लील संदेश भेजने के लिए जिम्मेदार हैं.

वहीं, सुनवाई के दौरान प्रतिवादी के वकील ने यह बताया कि एयरटेल का विभिन्न सेवा प्रदाताओं के साथ SMS और MMS सेवाओं के लिए राजस्व-साझाकरण ( Revenue-Sharing Agreement) समझौता है.

जस्टिस कांत ने इस पर सवाल उठाया कि क्या ऐसे समझौतों में यह कहा गया है कि आपत्तिजनक संदेशों की अनुमति होगी? सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि यदि उपभोक्ता इस प्रकार के आपत्तिजनक संदेशों का सामना करते हैं, तो वे एयरटेल जैसी सेवा प्रदाताओं का उपयोग करने से हिचक सकते हैं. जस्टिस कांत ने एयरटेल से कहा कि वे अधिकारियों को जांच करने और जिम्मेदार व्यक्तियों का पता लगाने दें.

अदालत ने यह भी कहा कि पुलिस को गंभीरता से कार्य करना चाहिए था और यह पता लगाना चाहिए था कि आपत्तिजनक संदेशों का स्रोत क्या था. यदि ये संदेश जानबूझकर भेजे गए हैं, तो निश्चित रूप से इसके गंभीर कानूनी परिणाम हो सकते हैं. अदालत ने यह भी माना कि भारती एयरटेल इस साइबर अपराध का एक तरह से शिकार है, जो कि उपभोक्ताओं पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है.

मामले में वीके सुरेश, एक वकील, ने अपनी प्रीपेड एयरटेल सिम पर अश्लील मैसेज की प्राप्ति की शिकायत की. उन्होंने आरोप लगाया कि उनके एयरटेल नंबर पर बार-बार अश्लील संदेश भेजे जा रहे हैं. इस शिकायत के बाद, तमिलनाडु के मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट के निर्देश पर एक FIR दर्ज की गई. इस फैसले को सीईओ ने हाईकोर्ट ने चुनौती दी, हाई कोर्ट ने FIR को बरकरार रखा, उसके बाद सीईओ ने FIR रद्द करने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट का रूख किया. सुप्रीम कोर्ट ने सीईओ को बरी करते हुए FIR बरकरार रखा है.