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'Trial Court को निचली अदालत कहना बंद करें', Supreme Court ने इस मामले में Registry को दिया आदेश

सुप्रीम कोर्ट ने रिजस्ट्री को ट्रायल कोर्ट को निचली अदालत कहने पर रोक लगाई है. कोर्ट इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देनेवाली याचिका पर सुनवाई के दौरान ट्रायल कोर्ट के फैसले की कॉपी मांग की थी.

Written by My Lord Team |Updated : February 26, 2024 1:36 PM IST

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने ट्रायल कोर्ट को 'निचली अदालत' (Lower Court) कहने पर रोक लगाया है. सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश रजिस्ट्री (Registry) को दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट (Trial Court) के आदेश को निचली अदालतों के रिकार्ड (Lower Court Record) की तरह पेश करने पर रोक लगाया. सुप्रीम कोर्ट में दोषियों ने इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) के आजीवन कारावास के उस फैसले को चुनौती दी है जिसमें इलाहाबाद हाईकोर्ट ने साल 2018 में दोनों दोषियों की आजीवन कारावास (Life Imprisonment) की सजा बरकरार रखी. यह फैसला 'सखावत बनाम उत्तर प्रदेश राज्य' मामले (Sakhawat v. State of Uttar Pradesh) 

लोअर कोर्ट नहीं Trial Court कहें: SC

जस्टिस अभय एस. ओका (Justice Abhay S. Oka) और जस्टिस उज्जल भुयन (Ujjal Bhuyan) की बेंच इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका सुन रही थी. कोर्ट ने (6 फरवरी, 2024 के दिन) केस से संबंधित ट्रायल कोर्ट के फैसले की सॉफ्ट कॉपी की मांग की थी. 8 फरवरी, 2024 के दिन सुनवाई के दौरान, उक्त कॉपी में ट्रायल कोर्ट रिकार्ड (टीसीआर) की जगह 'निचली अदालत रिकार्ड' (एलसीआर) का संबोधन पर सवाल उठाते हुए रजिस्ट्री को उक्त निर्देश दिया. 

बेंच ने कहा,

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"यह उचित होगा कि इस न्यायालय की रजिस्ट्ररी ट्रायल कोर्ट को निचली अदालत के तौर पर संबोधित करना बंद कर दें."

कोर्ट ने आगे कहा,

"यहां तक कि ट्रायल कोर्ट रिकार्ड (टीसीआर) को भी लोअर कोर्ट का रिकार्ड (एलसीआर) के तौर पर संदर्भित नहीं किया जाना चाहिए. इसे ट्रायल कोर्ट रिकार्ड (टीसीआर) के रूप में संदर्भित किया जाना चाहिए."

धारा 302 से जुड़ा है मामला

घटना 1981 की है, एक व्यक्ति की हत्या कर दी गई. मृतक के परिजनों ने दो लोगों को आरोपी बनाते हुए प्राथमिकी (FIR) दर्ज कराई. ट्रायल कोर्ट में सुनवाई हुई. कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता, 1860 (आईपीसी) की धारा 302 और धारा 307 के तहत दोनों आरोपियों को दोषी पाते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. 

दोषियों ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी. हाईकोर्ट ने गवाहों और सबूतों को मद्देनजर पाया कि अभियोजन (केस करनेवाले) पक्ष  ने उचित संदेह से परे अपना दावा साबित किया है. अक्टूबर, 2018 में हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को जारी रखते हुए अपना फैसला दिया. दोषियों के अपील को खारिज करने के साथ उन्हें सरेंडर करने का आदेश दिया. दोषियों ने हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. 

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि इस मामले में अगली सुनवाई 06 अगस्त, 2024 को होगी.