नई दिल्ली: कांग्रेस नेता डी के शिवकुमार को कर्नाटक हाईकोर्ट से बड़ा झटका लगा है. कर्नाटक हाईकोर्ट ने आय से अधिक संपंति के मामले में कर्नाटक सरकार द्वारा उनके खिलाफ सीबीआई जांच अनुमति देने के खिलाफ शिवकुमार की ओर से दायर याचिका को खारिज कर दिया है.
डीके शिवकुमार ने याचिका के जरिए भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत उनके द्वारा किए गए कथित अपराधों की जांच के लिए कर्नाटक राज्य सरकार द्वारा केंद्रीय जांच ब्यूरो को अनुमति देने के फैसले को चुनौती दी है.
जस्टिस के नटराजन ने याचिका को खारिज करते हुए अपने आदेश में कहा कि सीबीआई जांच का आदेश अपने आप में दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान अधिनियम के तहत सीबीआई को सहमति देने वाला एक साधारण कार्यकारी आदेश है.
शिवकुमार की ओर से कर्नाटक सरकार द्वारा दी गयी अनुमति आदेश में मंजूरी शब्द को लेकर आपत्ति जताते हुए कहा गया कि राज्य सरकार ने सीबीआई को मंजूरी के अनुसार आदेश पर अपना दिमाग नहीं लगाया है.
शिवकुमार के अधिवक्ता ने कहा कि मामले की जांच के लिए सीबीआई को मंजूरी देने के पर्याप्त कारण होने चाहिए औरआदेश पारित करते हुए इस बात को रेखांकित किया जाना चाहिए कि सरकार ने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा जारी एक पत्र की सामग्री को केवल बयान के आधार पर मामले को सीबीआई को भेज दिया है.
राज्य सरकार की ओर से डी के शिवकुमार की याचिका का विरोध करते हुए अदालत में कहा गया कि डीएसपीई अधिनियम की धारा 6 के तहत पारित आदेश स्वीकृति आदेश नहीं है, बल्कि मामले की जांच के लिए सीबीआई को दी गई सहमति है.
सरकार की ओर से दलील पेश कि गयी कि सहमति का आदेश एक साधारण कार्यकारी आदेश था और सहमति देने के लिए विस्तृत कारणों की आवश्यकता नहीं थी.
दोनो पक्षो की दलीले सुनने के बाद हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि हालांकि आपत्तिजनक आदेश में इसका उल्लेख किया गया था कि मंजूरी दी गई थी, लेकिन वस्तुतः यह केवल एक सहमति है और यह मंजूरी नहीं है और यह याचिकाकर्ता के खिलाफ मामले की जांच के लिए सीबीआई को सहमति देकर केवल एक साधारण कार्यकारी आदेश है.
इसके साथ ही अदालत ने डी के शिवकुमार की ओर से दायर याचिका को खारिज कर दिया.
हाईकोर्ट ने एम बालकृष्ण रेड्डी बनाम सीबीआई के सुप्रीम कोर्ट के फैसले, कर्नाटक और मद्रास हाईकोर्ट के अगल अलग फैसलो की नजीरों पर भरोसा करते हुए कहा कि राज्य सरकार द्वारा पारित आपत्तिजनक आदेश और कुछ नहीं बल्कि राज्य द्वारा दी गई सहमति थी.
हाईकोर्ट ने कहा कि डीएसपीई अधिनियम की धारा 6 के तहत और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 17 या 19 के तहत मंजूरी आवश्यक नहीं है.
डीके शिवकुमार के खिलाफ पहली एफआईआर 3 अक्टूबर, 2020 को दर्ज की गई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि उनकी संपत्ति 2013 से 2018 तक अनुपातहीन रूप से बढ़ी है.
प्राथमिकी के अनुसार, शिवकुमार और उनके परिवार के पास अप्रैल 2013 में 33.92 करोड़ रुपये की चल और अचल संपत्ति थी, लेकिन 2018 तक, उन्होंने 128.6 करोड़ रुपये की संपत्ति हासिल कर ली थी, जिससे 30 अप्रैल 2018 तक उनकी कुल संपत्ति 162.53 करोड़ रुपये हो गई.