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'केन्द्र को मिलने वाली Royalty टैक्स नहीं, राज्य सरकार को Cess लगाने का अधिकार', खनिज पर टैक्स मामले में SC ने सुनाया फैसला

सुप्रीम कोर्ट.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि खनिज लीज पर लेनेवाले द्वारा केन्द्र (मालिकों) को दी जानेवाली रॉयल्टी कर नहीं है. वहीं राज्य सरकार इन खनिज होल्डर्स पर उपकर(लेवी) लगा सकती है.

Written by Satyam Kumar |Updated : July 25, 2024 1:24 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने खनिज मिनरल पर टैक्स लगाने को लेकर राज्य और केन्द्र की स्थिति स्पष्ट कर दी है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि खनिज लीज पर लेनेवाले द्वारा केन्द्र (मालिकों) को दी जानेवाली रॉयल्टी कर नहीं है. वहीं राज्य सरकार इन खनिज होल्डर्स पर उपकर(Cess) लगा सकती है. सुप्रीम कोर्ट में 9 जजों की संवैधानिक बेंच अदालत के समक्ष एक दशक से लंबित मुकदमे की सुनवाई की. ये मामला मिनरल राइट्स से जुड़ा है जिसमें सुप्रीम कोर्ट विचार कर रही है कि क्या राज्य सरकार मिनरल पर लेवी लगा सकती है या नहीं? साथ ही लीज होल्डर्स के द्वारा केन्द्र को मिलने वाली रॉयल्टी टैक्स के बराबर है या नहीं?

सुप्रीम कोर्ट में 9 जजों की संवैधानिक बेंच ने खनिज मिनरल से जुड़े मामले की सुनवाई की.  सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली 9 जजों की बेंच में जस्टिस हृषिकेश रॉय, अभय एस ओका, बीवी नागरत्ना, जेबी पारदीवाला, उज्जल भुइंया, सतीश चंद्र शर्मा, ऑगस्टीन जार्ज मसीह और बीवी नागरत्ना शामिल थी. संवैधानिक बेंच ने ये फैसला 8:1 के बहुमत से सुनाया. जस्टिस बीवी नागरत्ना की राय बहुमत से अलग थी.

संवैधानिक बेंच ने फैसला सुनाया कि माइन और मिनरल(डेवलपमेंट एंड रेगुलेशन) अधिनियम (माइन एक्ट), राज्य को लेवी लगाने पर रोक नहीं लगाती है. साथ ही अदालत ने इंडिया सीमेंट्स के मामले में दिए अपने फैसले Royalty is a Tax को बदल दिया.

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अदालत ने कहा,

"रॉयल्टी टैक्स नहीं है. हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि इंडिया सीमेंट्स के निर्णय में यह कहा गया है कि रॉयल्टी कर है, जो कि गलत है.. सरकार को किए गए भुगतान को केवल इसलिए कर नहीं माना जा सकता क्योंकि कानून में बकाये के रूप में इसकी वसूली का प्रावधान है."

अदालत ने आगे कहा, 

"खनिज मामलो में टैक्स लगाने का अधिकार राज्य के पास है. संसद के सूची 1 के प्रविष्टि 50 के अनुसार केन्द्र के पास यह शक्ति नहीं है. वहीं राज्य के पास संविधान के अनुच्छेद 246 के साथ सूची 2 में प्रविष्टि 49 के अंतर्गत ये विधायी शक्ति है."

जस्टिस बीवी नागरत्ना ने दोनों निर्णयों से आपत्ति जताई. उन्होंने इंडिया सीमेन्ट्स के फैसले को सही ठहराया.

उन्होंने कहा,

"मेरी नजर में रॉयल्टी एक टैक्स है. वहीं राज्य के पास लेवी लगाने की कोई शक्ति नहीं है, प्रविष्टि 49 मिनरल वाली जमीनों की बात नहीं करती है. मेरी नजर में इंडिया सीमेंट्स के फैसले सही हैं."

पूरा मामला क्या है?

साल 1957 में केन्द्र ने माइन एंड मिनरल्स (डेवलपमेंट एंड रेगुलेशन) अधिनियम पारित किया. कानून के लागू होने के बाद से मिनरल से जुड़े कार्य क्षेत्र केन्द्र के हाथों में आ गया. माइन एंड मिनरल अधिनियम के सेक्शन 9 के अनुसार, केन्द्र सरकार ही माइन को लीज पर लेने वाले लोगों द्वारा माइन मालिकों को देनेवाली रॉयल्टी तय करेगी. रॉयल्टी मिनरल के अनुसार अलग-अलग होगी. इसी क्रम में तमिलनाडु राज्य ने 'मद्रास पंचायत एक्ट' लागू किया. प्रत्येक ब्लॉक के विकास के लिए लोकल टैक्स लगाया गया. अब भूमि राजस्व को लेकर केंन्द्र और राज्य में विवाद शुरू हो गया.

घटनाक्रम यूं हुआ. जुलाई 1963 में तमिलनाडु सरकार ने इंडिया सीमेंट्स लिमिटेड को माइन लीज पर दिया. धारा 9 के तहत रॉयल्टी तय की गई. वहीं इंडिया सीमेंट्स ने मद्रास पंचायत अधिनियम के अनुसार लगाए गए लोकल टैक्स को मद्रास हाईकोर्ट में चुनौती दी. मद्रास उच्च न्यायालय ने राज्य के कानून को बरकरार रखा. जब उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय में मामले की अपील की, तो उन्होंने तर्क दिया कि अतिरिक्त स्थानीय कर लगाना अनिवार्य रूप से उस रॉयल्टी पर टैक्स लगाने जैसा था जो वे पहले से ही राज्य सरकार को दे रहे थे. इंडिया सीमेंट्स लिमिटेड ने दावा किया कि तमिलनाडु सरकार के पास यह कानून बनाने के लिए कोई विधायी क्षमता नहीं है. तमिलनाडु सरकार ने तर्क दिया कि उपकर भूमि पर लगाया गया था और राज्य सूची की प्रविष्टि 49 और 50 के तहत, राज्य सरकारों के पास भूमि, भवन और खनिजों पर टैक्स लेने का अधिकार देता है. संसद ने, खनिज आदि पर टैक्स लगाने को लेकर, कोई सीमा का अधिकार सुरक्षित रखा है.

अक्टूबर 1989 में इंडिया सीमेंट्स लिमिटेड बनाम तमिलनाडु राज्य मामले में सात जजों की बेंच ने कहा कि "रॉयल्टी एक कर है." इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने माना कि राज्य सरकारें रॉयल्टी पर टैक्स वसूलने के लिए सक्षम नहीं हैं. यह नौ जजों के मामले का एक प्रमुख तर्क बन गया, खासकर वह हिस्सा जहां बेंच ने कहा कि "रॉयल्टी एक कर है."  दस साल बाद, बिहार में भी ऐसी ही घटना सामने आई.

साल 1999 में, बिहार कोल माइनिंग एरिया डेवलपमेंट अथॉरिटी एक्ट, 1992 और संबंधित नियमों को चुनौती देते हुए एक रिट याचिका दायर की गई, जिसमें खनिज युक्त भूमि पर उपकर और राजस्व टैक्स लगाया गया था. यह मामला खनिज क्षेत्र विकास प्राधिकरण बनाम स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया नामक मामले की उत्पत्ति की कारण बनी, जिस पर हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की.

अब साल 2004 में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने 3:2 के बहुमत से पाया कि इंडिया सीमेंट मामले में एक टाइपो हुआ है.

"Cess on Royalty is a Tax की जगह Royalty is a tax कर दिया गया है."

साल 2011 में तीन जजों की बेंच ने पाया कि वे इंडिया सीमेंट्स और केसोराम इंडस्ट्रीज के फैसले में प्रथम दृश्टतया (Prima Facie) विरोधाभास है. दोनों फैसले पांच जजों की बेंच द्वारा दिए गए हैं जिसे लेकर तीन जजों की बेंच ने इस मामले को पांच जजों की बेंच के पास भेजने के निर्देश दिए.

अक्टूबर 2023 में, चीफ जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ के नेतृत्व में सुप्रीम कोर्ट ने सभी लंबित नौ न्यायाधीशों के मामलों को सूचीबद्ध किया. उनमें से एक खनिज प्राधिकरण का मामला भी था, जो एक दशक से अधिक समय से बिना किसी महत्वपूर्ण सुनवाई के लंबित था. इस समय इसके साथ 85 लंबित मामले जुड़े हुए थे. आज सीजेआई की अगुवाई वाली 9 जजों की बेंच ने मामले में अपना फैसला सुना दिया है.

Case Title: मिनरल एरिया डेवलपमेंट अथॉरिटी बनाम स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया