नई दिल्ली: राजस्थान हाईकोर्ट (Rajasthan High Court) के न्यायधीश अनूप कुमार धंद (Justice Anoop Kumar Dhand) ने लिंग बदलने के एक मामले पर सुनवाई के दौरान कहा की मनुष्य को लिंग चुनने का अधिकार आत्मनिर्णय, गरिमा और स्वतंत्रता के सबसे बुनियादी पहलुओं में से एक है. हाईकोर्ट ने ऐसी टिप्पड़ी किस मामले को लेकर दी है, आइये जानते हैं.
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि राजस्थान हाईकोर्ट में एक मामला आया जिसमें याचिकाकर्ता जनरल फीमेल कैटेगरी के तहत एक ग्रेड III पीटी इंस्ट्रक्टर थीं. 32 की उम्र में उनको पता चला कि उन्हें जेंडर आइडेंटिटी डिसऑर्डर (Gender Identity Disorder) है जिसके बाद उन्हें डॉक्टर ने सेक्स रीअसाइनमेंट सर्जरी (Sex Reassignment Surgery) के लिए फिट माना.
सर्जरी के बाद याचिकाकर्ता खुद को एक पुरुष की तरह देखने लगे. याचिकाकर्ता ने अपना नाम और लिंग सरकारी दस्तावेजों और आधार कार्ड पर तो बदलवा लिया लेकिन पिछले तीन साल से, कई कोशिशों के बाद भी, उनके सर्विस रिकॉर्ड में यह बदलाव नहीं किये जा रहे हैं.
इसी के चलते उन्होंने एक रिट याचिका दायर की है; बता दें कि लिंग बदलने के बाद उन्होंने शादी कर ली और उनके दो बेटे भी हैं.
इस रिट याचिका पर राजस्थान हाईकोर्ट ने 'ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019' (The Transgender Person (Protection of Rights) Act, 2019) का जिक्र किया है.
बता दें कि 'ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019' के तहत एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति को न सिर्फ एक ट्रांसजेंडर की तरह पहचाने जाने का अधिकार है बल्कि उनके पास यह हक भी है कि वो अपना जेंडर खुद चुन सकते हैं.
राजस्थान हाईकोर्ट ने इस बारे में यह कहा है कि "कोर्ट का ऐसा मानना है कि याचिकाकर्ता के पास, जिन्होंने खुद को एक पुरुष समझा है और इस लिंग का चुनाव उन्होंने सेक्स रीअसाइनमेंट सर्जरी के जरिए किया है, यह अधिकार है कि वो खुद को एक पुरुष मान सकें. ऐसे में, उनके सर्विस रिकॉर्ड में उनका नाम और लिंग जरूर बदला जाना चाहिए."
याचिकाकर्ता ने क्योंकि लिंग बदलने के बाद शादी कर ली और उनके दो बेटे भी हैं, कोर्ट का मानना है कि नाम और लिंग बदलवाना बहुत जरूरी है ताकि उनकी पहचान समाज में स्पष्ट हो सके और उनकी पत्नी और बच्चों को उनके अधिकार मिल सकें.
राजस्थान हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता से कहा है कि वो जिला अधिकारी (District Magistrate) को एक याचिका दें और अपने नाम और जेंडर को बदलवाने की प्रक्रिया को पूरा करें.
हाईकोर्ट ने जिला अधिकारी को याचिकाकर्ता के जेंडर रीअसाइनमेंट को सत्यापित करने और जेंडर चेंज का प्रमाण-पत्र देने के लिए 60 दिनों का समय दिया है, जिनकी शुरुआत तब से होगी जब याचिकाकर्ता उनके समक्ष याचिका प्रस्तुत करेंगे और साथ में इस ऑर्डर की कॉपी भी अटैच करेंगे.