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जजों की नियुक्ति मामले में कॉलेजियम के फैसले की 'वजह' को सार्वजनिक नहीं किया जा सकता: दिल्ली हाईकोर्ट 

जज (सांकेतिक चित्र)

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि कॉलेजियम जजों की नियुक्ति लेकर निजी जानकारियों को लेकर फैसला लेती है जिसे सार्वजनिक करना कैंडिडेट के हित में नहीं होगा. इस दौरान अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का भी जिक्र किया जिसमें पात्रता और उपयुक्तता के बीच में अंतर बताया गया है.

Written by Satyam Kumar |Published : July 4, 2024 6:56 PM IST

Collegium Decision On Judges Appointment: हाल ही में दिल्ली हाईकोर्ट ने 'कॉलेजियम किस आधार पर जजों की नियुक्ति अस्वीकृत करने के कारणों को सार्वजनिक करने' की मांग करनेवाली याचिका खारिज कर दी है. दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि कॉलेजियम जजों की नियुक्ति लेकर निजी जानकारियों को लेकर फैसला लेती है जिसे सार्वजनिक करना कैंडिडेट के हित में नहीं होगा. इस दौरान अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का भी जिक्र किया जिसमें पात्रता और उपयुक्तता के बीच में अंतर बताया गया है. बता दें कि दिल्ली हाईकोर्ट ने ये टिप्पणी सीए राकेश कुमार गुप्ता और सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया मामले में की.

कॉलेजियम के फैसले के पीछे की वजहों को नहीं बताया जा सकता: HC 

दिल्ली हाईकोर्ट में एक्टिंग चीफ जस्टिस मनमोहन और और जस्टिस तुषार राव गेडेला की बेंच ने जजों की नियुक्ति में कॉलेजियम के फैसले के कारणों को सार्वजनिक करने से इंकार किया है.

अदालत ने कहा,

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"अस्वीकृति के कारणों को बताना उन लोगों के हितों और प्रतिष्ठा के लिए हानिकारक होगा जिनके नाम उच्च न्यायालयों द्वारा सुझाए गए हैं, क्योंकि कॉलेजियम उस जानकारी के आधार पर निर्णय लेता है जो विचाराधीन व्यक्ति के लिए निजी है. यदि ऐसी जानकारी सार्वजनिक की जाती है, तो आगे की नियुक्ति प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न होगी."

याचिकाकर्ता ने बताया किया कि वर्ष 2023 में हाईकोर्ट द्वारा न्यायाधीशों की पदोन्नति के संबंध में की गई सिफारिशों को सुप्रीम कोर्ट द्वारा अस्वीकार किए जाने की दर लगभग 35.29% थी, जबकि वर्ष 2021 में यह दर केवल 4.38% थी. उनका कहना है कि सर्वोच्च न्यायालय कॉलेजियम को सिफारिशों को अस्वीकार करने के लिए हाईकोर्ट कॉलेजियम को कारण बताना चाहिए.

अदालत ने इस प्रतिक्रिया देते हुए कहा,

"ऐसा प्रतीत होता है कि सिंगल बेंच जज ने संविधान के अनुच्छेद 217 (Article 217) के तहत न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए पात्रता मानदंड को नियुक्ति के मानदंड के रूप में गलत तरीके से माना है, जो मात्रात्मक और तुलनीय हैं."

सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति के संबंध में कानून पहले ही स्पष्ट है. सुप्रीम कोर्ट ने बार-बार हाईकोर्ट के जजों के रूप में नियुक्त किए जाने वाले व्यक्ति की पात्रता और उपयुक्तता (Eligibility And Suitability) के बीच अंतर स्पष्ट किया है. पात्रता एक वस्तुनिष्ठ कारक (Objective Factor) है जिसे अनुच्छेद 217(2) में निर्दिष्ट मापदंडों या योग्यताओं को लागू करके निर्धारित किया जाता है, जबकि किसी व्यक्ति की योग्यता और उपयुक्तता का मूल्यांकन परामर्श प्रक्रिया में किया जाता है.

अदालत ने उक्त टिप्पणी करके जजों की नियुक्ति के कारणों को सार्वजनिक करने की मांग वाली याचिका खारिज कर दी है.