राजनीतिक दलों (Political Parties) में भी महिलाओं को कार्यस्थलों पर यौन उत्पीड़न से बचाने के लिए बनाया कानून (POSH) लागू किए जाने की मांग पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने याचिकाकर्ता को पहले चुनाव आयोग के पास अपनी मांग रखने के निर्देश दिए है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राजनीतिक पार्टियों के रजिस्ट्रेशन का अधिकार चुनाव आयोग के पास है, वो इस मामले के सक्षम ऑथोरिटी है. आप उनके पास अपनी बात रखिए. अगर वहाँ से कोई समाधान नहीं निकलता तो आप फिर से कोर्ट आने के लिए स्वतंत्र है. बता दें कि यह याचिका सुप्रीम कोर्ट लॉयर योगमाया एमजी ने दायर की है, जिसमें POSH अधिनियम को केवल वर्कप्लेस तक ना सीमित कर इसे राजनीतिक दलों पर भी लागू किया जाना चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस मनमोहन की खंडपीठ ने राजनीतिक दलों पर प्रिवेंशन ऑफ सेक्सुअल हैरेसमेंट (POSH, 2013) से जुड़ी याचिका पर सुनवाई की. सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता से पूछा कि राजनीतिक दलों का लीगल स्टेटस क्या है? इस पर याचिकाकर्ता ने जनप्रतिनिधि अधिनियम की धारा 29ए के तहत राजनीतिक दल पंजीकृत संस्थाएं है. तब सुप्रीम कोर्ट ने जबाव देते हुए कहा कि इस मामले में चुनाव आयोग को भी प्रतिवादी बनाया जाना चाहिए.
याचिका में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी, कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी), ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) को प्रतिवादी बनाते हुए चुनाव आयोग के तहत सभी पंजीकृत राजनीतिक दल को POSH लागू करने की मांग की गई है.
POSH में राजनीतिक दलों को शामिल करने की मांग करते हुए याचिकाकर्ता ने कहा कि POSH अधिनियम, 2013 की धारा 4 के अनुसार राजनीतिक दल आंतरिक शिकायत समिति (ICC) गठित करें. वहीं राजनीतिक दल के सदस्यों को POSH अधिनियम की धारा 2(f) के तहत 'कर्मचारी' होने के दायरे में आते हैं.