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आंतरिक शिकायत कमेटी POSH Act के तीन महीने से पुरानी शिकायतों पर विचार नहीं कर सकती: जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट

याचिकाकर्ता (आरोपी) ने आंतरिक शिकायत कमेटी के फैसले को चुनौती देते हुए कहा कि ICC की कार्यवाही कानूनी रूप से उचित नहीं है, क्योंकि शिकायत POSH Act की धारा 9(1) के तहत निर्धारित तीन महीने की सीमा अवधि से परे दायर की गई थी.

जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट

Written by Satyam Kumar |Published : December 16, 2024 11:28 AM IST

POSH Act: हाल ही में जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट ने प्रिवेंशन ऑफ सेक्सुअल असॉल्ड एंड हैरेसमेंट एट वर्कप्लेस अधिनियम (POSH Act) से जुड़े एक मामले में अहम टिप्पणी की है. हाईकोर्ट ने कहा कि वर्कप्लेस पर सेक्सुअल असॉल्ड की शिकायतों को निपटने के लिए बनी आंतरिक शिकायत कमेटी (Internal Complaint Committee) तीन महीने से पुरानी शिकायतों पर POSH Act के तहत विचार नहीं कर सकती है.

तीन महीने के अंदर ICC को POSH की शिकायतों पर सुनवाई का अधिकार: HC

जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट में जस्टिस वानी ने पॉश अधिनियम का हवाला देते हुए कहा कि कानून की धारा 9(1) शिकायतों को तीन महीने के भीतर दर्ज कराने का जिक्र है. शिकायत की समय सीमा को तभी बढ़ाई जा सकती है, जब पीड़ित द्वारा कोई उचित कारण दिया जाए. अदालत ने पाया कि बिना शिकायत में हुई देरी के कारणों को दर्ज किए आंतरिक शिकायत कमेटी (ICC) ने याचिकाकर्ता पर ₹1 लाख का जुर्माना लगाने और कदाचार की कार्यवाही शुरू करने की सिफारिश की.

याचिकाकर्ता ने आंतरिक शिकायत कमेटी के फैसले को चुनौती देते हुए कहा कि ICC की कार्यवाही कानूनी रूप से उचित नहीं है, क्योंकि शिकायत POSH Act की धारा 9(1) के तहत निर्धारित तीन महीने की सीमा अवधि से परे दायर की गई थी. याचिकाकर्ता ने यह भी बताया कि ICC ने देरी को माफ करने का कोई कारण दर्ज नहीं किया, जिससे उनकी कार्रवाई अधिकार क्षेत्र से बाहर हो गई.

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अदालत ने 25 अप्रैल, 2016 को हुई कथित घटना पर 16 अक्टूबर, 2017 को दर्ज की गई शिकायत को स्वीकार करने से इंकार कर दिया. जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट ने कहा कि प्राधिकरण के पास 2013 अधिनियम की धारा 9(1) के तहत प्रदान की गई तीन महीने की क्षम्य समय सीमा से परे दायर की गई शिकायत पर कार्रवाई करने और आदेश जारी करने का अधिकार नहीं था. अधिनियम की धारा 9, यह शिकायत दर्ज करने के लिए निर्धारित समयसीमा का कड़ाई से पालन करने का संकेत देता है, जो प्रभावी समाधान के लिए कानूनी प्रावधानों का पालन करने के महत्व पर जोर देता है.

क्या है मामला?

आयकर विभाग के एक सीनियर अधिकारी भट पर उत्पीड़न का आरोप लगाया गया. शिकायत उनके पर्यवेक्षण में कार्यरत एक कर सहायक ने लगाया. ये आरोप 25 अप्रैल, 2016 की एक घटना से संबंधित हैं, जिसे शिकायतकर्ता (प्रतिवादी) ने 2016 में अपनी शिकायत को सबूतों के अभाव में वापस ले लिया. इसके बाद, प्रतिवादी (शिकायतकर्ता) ने मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, श्रीनगर के समक्ष शिकायत दर्ज कराई, परिणामस्वरूप धारा 354 आरपीसी के तहत FIR दर्ज की गई. सुनवाई के बाद, याचिकाकर्ता को सितंबर 2018 में बरी कर दिया गया. यह निर्णय याचिकाकर्ता के लिए एक राहत का कारण बना, लेकिन मामला यहीं खत्म नहीं हुआ.

अक्टूबर 2017 में, प्रतिवादी ने उसी घटना के संबंध में आंतरिक शिकायत कमेटी (ICC) के समक्ष एक और शिकायत दर्ज की. आईसीसी ने फरवरी 2021 में अपनी रिपोर्ट पेश की, जिसमें याचाकिकर्ता पर एक लाख का जुर्माना और कदाचार का मामला चलाने के आदेश दिए गए थे. याचिकाकर्ता (आरोपी अधिकारी) ने इसी फैसले को जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट में चुनौती दी थी.