POCSO Act: हाल ही में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (POCSO) अधिनियम के दुरुपयोग को लेकर अहम टिप्पणी की है. अदालत ने कहा कि इस कानून का उपयोग यंग कपल को परेशान करने के लिए, साथ ही व्यक्तिगत प्रतिशोध के लिए हथियार बनाया जा रहा है. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आरोपी को जमानत दी है.
इलाहाबाद हाईकोर्ट में जस्टिस कृष्ण पहल की पीठ पॉक्सो अधिनियम के आरोपी की जमानत याचिका पर सुनवाई कर रहा था.
अदालत ने कहा,
"POCSO अधिनियम 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को यौन शोषण से बचाने के लिए बनाया गया है. आजकल, अक्सर यह उनके शोषण का एक हथियार बन गया है. अधिनियम का उद्देश्य किशोरों के बीच सहमति से बने संबंधों को आपराधिक बनाना कभी नहीं था."
कार्यवाही के दौरान अदालत के सामने ऑसिफिकेशन टेस्ट रिपोर्ट (Ossification Test Report) आई, जिससे पता चला कि पीड़िता की उम्र 19 वर्ष की है. इस फैक्ट ने मामले को पूरी तरह से बदल दिया. चूंकि मामले में पीड़िता की उम्र 19 वर्ष थी, जिसके चलते पॉक्सो एक्ट नहीं लगाया जा सकता था.
जस्टिस पहल ने पाया कि लड़की की उम्र गलती से नहीं बल्कि जानबूझकर पोक्सो अधिनियम का फायदा उठाने के लिए गलत बताई गई थी, जिसका उद्देश्य आरोपी को परेशान करना था. जस्टिस ने अफसोस जताते हुए कहा कि एक गलत शिकायत से आरोपी को छह महीने से आजीवन कारावास में रहना पड़ा.
जस्टिस ने कहा,
"पॉक्सो अधिनियम नाबालिगों की सुरक्षा के लिए बनाया गया है औस इस मामले में, मुखबिर द्वारा दी गई गलत जानकारी के कारण इसका दुरुपयोग किया गया. यह उदाहरण है कि POCSO अधिनियम जैसे सुरक्षात्मक कानूनों का दुरुपयोग से किस तरह हो सकता है."
अदालत ने आरोपी को जमानत दे दी .
इलाहाबाद हाईकोर्ट प्रकाश कुमार गुप्ता नामक व्यक्ति की जमानत याचिका पर सुनवाई कर रहा था. मामले में इंडियन पीनल कोड (IPC) की धारा 363, 366, 376(3) और पॉक्सो अधिनियम की धारा 5 के तहत आरोप है. अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया कि आरोपी ने 13 साल की एक लड़की को बहला-फुसलाकर उसके साथ यौन संबंध बनाए है. लड़की के पेरेंट होने का दावा करने वाले मुखबिर द्वारा दर्ज कराई गई प्राथमिकी में कहा गया है कि पीड़िता नाबालिग है, जिससे पोक्सो अधिनियम के कड़े प्रावधान लागू होते हैं.
अदालत ने आरोपी को झूठे आधार पर छह महीने से जेल में देखकर जमानत याचिका स्वीकार करते हुए आरोपी को जमानत दे दी है.