Delhi Court: हाल ही में दिल्ली कोर्ट ने नाबालिग के साथ यौन शोषण मामले में दोषी व्यक्ति को पांच साल जेल की सजा के साथ साढ़े सात लाख रूपये का जुर्माना लगाया है. अदालत ने सजा सुनाते हुए कहा कि व्यक्ति ने काम के वश में अपराध किया है, इसलिए ये अदालत का दायित्व है कि आरोपी को परिस्थितियों को देखते हुए उचित सजा सुनाए. बता दें कि ये मामला साल 2017 का है जिसमें पीड़ित ने आरोपी के खिलाफ पॉक्सो अधिनियम के तहत शिकायत दर्ज कराई थी.
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश राजेश कुमार 43 वर्षीय व्यक्ति के खिलाफ सजा तय करने को लेकर दलीलें सुन रहे थे, जिसे पहले यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (POCSO) अधिनियम की धारा 10 (गंभीर यौन हमला) के तहत दोषी ठहराया गया था. अदालत ने पीड़ित को 7.5 लाख रुपये का मुआवजा भी देने का आदेश दिया है.
7 सितंबर को दिए गए अपने फैसले में अदालत ने कहा कि सजा सुनाना आपराधिक न्याय प्रणाली के महत्वपूर्ण पहलुओं में से एक है और आपराधिक अदालतों को अक्सर इस बात का सामना करना पड़ता है कि दोषी को क्या उचित सज़ा दी जानी चाहिए. सज़ा सुनाते समय पीड़ित पर किए गए अपराध की प्रकृति, समाज पर उसके प्रभाव, पीड़ित की विशिष्ट परिस्थितियों और आरोपी से जुड़ी परिस्थितियों को ध्यान में रखा जाता है और (यह कि) सज़ा अपर्याप्त या अत्यधिक नहीं होनी चाहिए.
विशेष लोक अभियोजक निम्मी सिसोदिया ने अधिकतम सजा की मांग करते हुए कहा कि दोषी ने पीड़ित को चूमकर और उसके निजी अंगों को छूकर उसके साथ गंभीर यौन हमला किया था. पीड़ित के बयान सहित अपने सामने मौजूद सबूतों पर गौर करते हुए अदालत ने कहा कि ऐसा लगता है कि दोषी ने वासना या जुनून के वश में आकर अपराध किया है. गरीबी और आपराधिक पृष्ठभूमि की कमी अपराध को कम करने वाले प्रमुख कारक नहीं हैं. अदालत ने कहा कि इसलिए, वर्तमान मामले के तथ्यों और परिस्थितियों, (बचाव पक्ष के वकील और सरकारी अभियोजक के) प्रस्तुतीकरण, दोषी की उम्र और परिवार की स्थिति तथा अपराध के तरीके को देखते हुए, दोषी को पोक्सो अधिनियम की धारा 10 के तहत 2,000 रुपये के जुर्माने के साथ पांच साल के सश्रम कारावास की सजा सुनाई जाती है. अदालत ने पीड़ित को 7.5 लाख रुपये का मुआवजा भी देने का आदेश दिया है.