नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court of India) के सेवानिवृत्त न्यायाधीशों (Retired Judges) के पोस्ट-रिटाइरमेंट पोलिटिकल अपॉइंटमेंट्स के खिलाफ एक जनहित याचिका (PIL) दायर की गई है। इस पीआईएल में याचिकाकर्ता ने 'कूलिंग पीरियड' की बात कही है। यह जनहित याचिका किसने फाइल की है, इसके पीछे का कारण क्या है और यहां किस 'कूलिंग पीरियड' की बात हो रही है, आइये विस्तार से समझते हैं.
ये जनहित याचिका बॉम्बे लॉयर्स एसोसिएशन (Bombay Lawyers Association) ने फाइल की है। याचिका का उद्देश्य 'न्यायपालिका की स्वतंत्रता, देश के कानून और तर्कसंगतता के आदर्शों को बनाए रखना' और 'भारत के संविधान के मूल उद्देश्यों और लोकतांत्रिक आदर्शों को संरक्षित रखना' है।
याचिकाकर्ता का यह भी कहना है कि इस तरह के अपॉइंटमेंट के द्वारा भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 में शामिल मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ है।
दरअसल बॉम्बे लॉयर्स एसोसिएशन ने अपनी इस जनहित याचिका के जरिए सुप्रीम कोर्ट से यह अनुरोध किया है कि उच्च न्यायालयों (High Courts) और सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) के सेवानिवृत्त न्यायाधीशों के लिए एक 'कूलिंग पीरियड' होना चाहिए। इस कूलिंग पीरियड की अवधि दो साल होनी चाहिए जिसके बाद ही ये रिटाइर्ड जज किसी पोलिटिकल अपॉइंटमेंट को एक्सेप्ट कर पाएंगे।
याचिकाकर्ता का यह मानना है ऐसा हो सकता है कि न्यायधीश का किसी अपॉइंटमेंट को एक्सेप्ट करना 'क्विड प्रो क्वो' (Quid Pro Quo) न हो लेकिन हर हाल में कूलिंग पीरियड इसलिए जरूरी है ताकि लोगों की न्यायपालिका और न्यायधीशों पर विश्वसनीयता बनी रहे।
याचिकाकर्ता ने पूर्व सुप्रीम कोर्ट न्यायधीश एस अब्दुल नजीर (Justice S Abdul Nazeer) की ओर ध्यान आकर्षित किया है जिन्हें रिटाइरमेंट के एक महीने के अंदर ही आंध्र प्रदेश का राज्यपाल (Governor of Andhra Pradesh) अपॉइंट कर दिया गया था।
बता दें कि जस्टिस नजीर से पहले न्यायधीश पी सथासिवम (Justice P Sathasivam) और न्यायधीश रंजन गोगोई (Justice Ranjan Gogoi) ने भी रिटाइरमेंट के चार-पांच महीनों के अंदर पोलिटिकल अपॉइंटमेंट्स एक्सेप्ट किए थे।