सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सांसदों और विधायकों (MPs/MLAS) के लिए अहम फैसला दिया है. दूसरों से पैसे लेकर उनकी मांगों को सदन (Parliament) में उठाने वाले सांसदों- विधायकों को संसदीय विशेषाधिकार (Parliamentary Privileges) के तहत राहत नहीं दी जाएगी. दूसरे शब्दों में, ऐसे आरोप साबित होने पर कानूनी कार्रवाई होगी. सुप्रीम कोर्ट झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की बहन सीता सोरेन (Sita Soren) की याचिका पर सुनवाई करने के दौरान ये फैसला दिया. सीता सोरेन ने शीर्ष न्यायालय ने झारखंड हाईकोर्ट (Jharkhand High Court) के फैसले को चुनौती दी है. सीता सोरेन पर घूस लेकर एक राज्यसभा मेंबर को वोट देने का आरोप है. ये मामला सीता सोरोन v. भारत संघ के बीच है) [ Sita Soren vs Union of India]
संसदीय विशेषाधिकार में, विधानसभा या संसद सदस्यों को अपनी बात खुलकर रखने के लिए छूट दी गई है जिससे वे लोक हित की बातों को बिना किसी दबाव के रख सकते हैं. इस दौरान कही गयी बातों के लिए उन पर किसी प्रकार की कानूनी कार्रवाई से इम्युनिटी दी गई है. ये इम्युनिटी संसद सदस्यों (MPs) को संविधान के अनुच्छेद 105(2) में दी गई है. ये संसदीय विशेषाधिकार विधानसभा सदस्यों (MLAs) को संविधान के अनुच्छेद 194(2) के तहत प्राप्त हैं.
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एएस बोपन्ना, एमएम सुंदरेश, पीएस नरसिम्हा, जेबी पारदीवाला, पीवी संजय कुमार और मनोज मिश्रा की बेंच ने इस मामले को सुना है.
बेंच ने कहा,
"नरसिम्हा राव के फैसले के बहुमत और अल्पमत के फैसले का विश्लेषण करते समय, हम असहमत हैं और इस फैसले को खारिज कर देते हैं कि सांसद छूट का दावा कर सकते हैं... नरसिम्हा राव के मामले में बहुमत का फैसला जो विधायकों को छूट देता है, गंभीर खतरा उत्पन्न कर सकता है और इसलिए इसे खारिज किया जाता है."
साल 1998 में, पीवी नरसिम्हा राव केस में सुप्रीम ने संसदीय विशेषाधिकार से जुड़ा एक फैसला दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि आर्टिकल 105(2) सांसदो को घूस लेने के अपराध से इम्युनिटी देती हैं. कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा था कि अनुच्छेद 105(2) न केवल वोटिंग से जुड़े मामले बल्कि वोट देने के ली जानेवाली घूस से भी इम्युनिटी देती है. सुप्रीम कोर्ट में आज सात-जजों की संवैधानिक बेंच ने इस फैसले को पलट दिया है.
याचिकाकर्ता सीता सोरेन झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की बहन है. सीता सोरेन पर घूस लेकर राज्य सभा चुनाव में एक मेंबर के लिए वोट करने का आरोप लगाया गया है. चुनाव आयोग में शिकायत दर्ज हुआ. सीता सोरेन पर क्रिमिनल कांस्पीरेंसी और घूस लेने के अपराध के तहत आइपीसी और करप्शन एक्ट की सुसंगत धाराओं में मामला दर्ज हुआ.
आयोग ने मामले को संज्ञान में लेते हुए सीबीआई को जांच सौंप दी. साल 2014: झारखंड हाईकोर्ट ने पाया कि सीता सोरेन को जिस व्यक्ति ने घूस ऑफर किया, सीता सोरेन ने उसे वोट नहीं दिया था. सीता सोरेन सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की. याचिका में झारखंड हाईकोर्ट के फैसले को को खारिज करने की मांग थी. वहीं, सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने अपने नरसिम्हा राव वर्सेस स्टेट में दिए गए फैसले को पलट दिया है.