मंगलवार यानि आज राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) ने 5 जुलाई को मीडिया में आई एक रिपोर्ट पर स्वत: संज्ञान लिया. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली के उत्तर-पश्चिम जिले के सरस्वती विहार इलाके में 23 बाल मजदूरों को बचाया गया है. एक आधिकारिक विज्ञप्ति के अनुसार, नौ लड़कियों और 14 लड़कों सहित बच्चों को आस-पास के राज्यों से दिल्ली लाया गया था और वे विभिन्न कारखानों में काम कर रहे थे.
मानवाधिकार आयोग ने कहा कि अगर समाचार रिपोर्ट की सामग्री सच है, तो यह बच्चों के अधिकारों के उल्लंघन का गंभीर मुद्दा उठाती है. 2016 में संशोधित बाल श्रम (निषेध और विनियमन) अधिनियम, 1986 घरेलू मदद सहित किसी भी क्षमता में 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को काम पर रखने पर रोक लगाता है.
आयोग ने कहा,
"यह अधिनियम किसी बच्चे को कामगार/मजदूर के रूप में काम पर रखना भी एक आपराधिक अपराध बनाता है। तदनुसार, इसने मुख्य सचिव, एनसीटी दिल्ली सरकार और पुलिस आयुक्त, दिल्ली को दो सप्ताह के भीतर मामले में एक विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए नोटिस जारी किया है."
मानवाधिकार आयोग ने जिला मजिस्ट्रेट (DM), उत्तर पश्चिमी दिल्ली को बाल श्रम (निषेध और विनियमन) अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार की गई कार्रवाई, उनके पुनर्वास और उनके संबंधित परिवारों के साथ पुनर्मिलन के साथ-साथ उनकी शिक्षा जारी रखने के लिए उठाए गए कदमों को इंगित करने वाली एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने का भी निर्देश दिया.
विज्ञप्ति में कहा गया है,डीएम, उत्तर पश्चिमी दिल्ली से यह भी अपेक्षित है कि यदि कोई बाल मजदूर बंधुआ बनाकर रखा जा रहा है तो उसके खिलाफ की गई कानूनी कार्रवाई के बारे में भी सूचित करें.
मानवाधिकार आयोग ने बच्चों को बाल मजदूरी में लगाए जाने को लेकर सर्वेक्षण कराने की मांग की है. आयोग के अनुसार, दिल्ली क्षेत्र में एक सर्वेक्षण किए जाने की आवश्यकता है, ताकि पता चल सके कि क्या ऐसी और औद्योगिक इकाइयां हैं, जहां बच्चों को मजदूरी के रूप में लगाया जा रहा है तथा उनके खिलाफ क्या कार्रवाई की गई है.