नयी दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को केंद्र से यह स्पष्ट करने को कहा कि क्या नगालैंड नगरपालिका और नगर परिषद चुनावों में महिलाओं के लिए एक तिहाई आरक्षण की संवैधानिक योजना का उल्लंघन किया जा सकता है, जहां विधानसभा ने नगरपालिका अधिनियम को निरस्त करने का प्रस्ताव पारित किया हो और शहरी स्थानीय निकायों (यूएलबी) के लिए चुनाव न कराने का संकल्प व्यक्त किया हो।
न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की पीठ ने कहा कि नगालैंड नगरपालिका अधिनियम 2001 को निरस्त करके चुनाव कराने के बारे में शीर्ष अदालत को दिए गए वचन से बचने के लिए एक ‘सरल तरीका’ अपनाया गया है। पीठ ने कहा कि यह महिला सशक्तीकरण का मुद्दा है।
शीर्ष अदालत ने पांच अप्रैल को नगालैंड में यूएलबी चुनाव को अगले आदेश तक रद्द करने वाली 30 मार्च की अधिसूचना पर रोक लगा दी थी। यह चुनाव लगभग दो दशकों के बाद 16 मई को होने वाले हैं। आदिवासी संगठनों और नागरिक समाज समूहों के दबाव के बाद नगालैंड विधानसभा ने नगरपालिका अधिनियम को निरस्त करने और चुनाव न कराने का प्रस्ताव पारित किया था।
राज्य चुनाव आयोग (एसईसी) ने नगालैंड नगरपालिका अधिनियम 2001 के निरस्त किये जाने के मद्देनजर पूर्व में अधिसूचित चुनाव कार्यक्रम को ‘अगले आदेश तक’ रद्द किये जाने की अधिसूचना जारी की थी। शीर्ष अदालत राज्य में स्थानीय निकायों के चुनावों में महिलाओं के लिए 33 फीसदी आरक्षण की मांग वाली याचिका पर सुनवाई कर रही है।
पीठ ने सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) के एम नटराज से इस मुद्दे पर केंद्र के रुख के बारे में जानना चाहा। पीठ ने कहा, ‘‘हम एएसजी से यह चाहेंगे कि वह हमें इस बारे में सहयोग करें और केंद्र सरकार के इस रुख से अवगत करायें कि केंद्र सरकार की राय में क्या नगरपालिका और नगर परिषद चुनावों में एक तिहाई आरक्षण के संवैधानिक जनादेश का नगालैंड सरकार द्वारा उल्लंघन किया जा सकता है।"
पीठ ने केंद्र का जवाब रिकॉर्ड पर रखने के लिए एएसजी को दो सप्ताह का समय दिया। शुरुआत में, राज्य सरकार की ओर से पेश वकील ने घटनाक्रम का जिक्र किया और कहा कि कई समूहों ने चुनाव के बहिष्कार का आह्वान किया है और ऐसे में चुनाव कराने का मकसद खत्म हो जाएगा। न्यायमूर्ति कौल ने कहा, ‘‘सच कहूं, तो मेरे दिमाग में यह (महिला आरक्षण) महिला सशक्तिकरण का मुद्दा है।’’
जब राज्य सरकार की ओर से पेश वकील ने दलील दी कि सरकार आरक्षण के खिलाफ नहीं है, तो पीठ ने कहा, ‘‘वास्तव में राज्य सरकार महिलाओं के लिए आरक्षण नहीं चाहती थी और इसलिए वह चुनावों को रोकने के लिए बार-बार कोई न कोई मुद्दा लेकर आ रही थी।’’ याचिकाकर्ताओं ने चुनाव रद्द करने के खिलाफ अधिवक्ता सत्य मित्रा के माध्यम से शीर्ष अदालत के समक्ष एक अर्जी दायर की है और 14 मार्च की ‘अवज्ञा’ के लिए अवमानना कार्रवाई करने का आग्रह किया है।