नई दिल्ली:मुस्लिम समाज में पुरूषों द्वारा एक से अधिक महिला के साथ विवाह और निकाह हलाला की प्रथा पर बैन लगाने की मांग को लेकर दायर याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया है.
सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की पीठ अब इन दोनों ही मामलों पर सुनवाई करेगी. भाजपा नेता और अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने याचिका दायर करते हुए मुस्लिमों में बहुविवाह और निकाह हलाला की प्रथा की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी है.
पहली बार यह मामला सुप्रीम कोर्ट के समक्ष जुलाई 2018 आया था, सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे से जुड़ी कई याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए मामले को संविधान पीठ के पास भेज दिया था.
शुक्रवार को सीजेआई डी वाई चन्द्रचूड़ और जस्टिस पी एस नरसिम्हा की पीठ ने अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय की ओर से मामले को मेंशन करते हुए पीठ से अनुरोध किया कि इस मामले में नयी संविधान पीठ गठित करने की जरूरत है.
उपाध्याय के अधिवक्ता ने पीठ से कहा कि पूर्व की संविधान पीठ के दो सदस्य जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस हेमंत गोयल सेवानिवृत हो चुके है. ऐसे में नयी पीठ का गठन करने की आवश्यक्ता है.
सीजेआई की पीठ ने उपाध्याय के अधिवक्ता के तर्क से सहमत होते हुए ये माना कि मामले में सुनवाई के लिए पांच जजों की नई पीठ गठित करने की आवश्यकता है. सीजेआई ने कहा पांच जजों की बेंच के सामने अभी कई महत्वपूर्ण मामले लंबित हैं, हम एक बेंच का गठन करेंगे और सुनवाई करेंगे.
गौरतलब है कि इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट के 5 जज जस्टिस इंदिरा बनर्जी, हेमंत गुप्ता, सूर्यकांत, एमएम सुंदरेश और सुधांशु धूलिया की पीठ ने 30 अगस्त 2022 को सुनवाई की थी. सुनवाई के कुछ समय बाद ही जस्टिस इंदिरा बनर्जी 23 सितंबर 2022 को और जस्टिस हेमंत गुप्ता 16 अक्टूबर 2022 को सेवानिवृत हो गए थे.
पीठ के 5 में से 3 सदस्यों के सेवानिवृत होने के चलते बहुविवाह और निकाह-हलाला के खिलाफ दायर 8 याचिकाओं पर सुनवाई नहीं हो पा रही थी, जिसके चलते उपाध्याय के अधिवक्ता ने मामले को सीजेआई के समक्ष मेंशन किया. इन 8 याचिकाओं में एक जनहित याचिका अश्विनी उपाधाय की है.
उपाध्याय की ओर से दायर जनहित याचिका में बहुविवाह और 'निकाह हलाला' को असंवैधानिक और अवैध घोषित करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है.
याचिका के अनुसार मुस्लिम समाज में जहां बहुविवाह की प्रथा एक मुस्लिम पुरुष को चार पत्नियां रखने की अनुमति देती है, वहीं 'निकाह हलाला' उस प्रक्रिया से संबंधित है, जिसमें एक मुस्लिम महिला, जो तलाक के बाद अपने पति से दोबारा शादी करना चाहती है, को पहले किसी अन्य व्यक्ति से शादी करनी होती है और शादी के बाद उससे तलाक लेना होता है.