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मृतक बेटी के भरण पोषण का बकाया प्राप्त करने के लिए मां भी हकदार: Madras HC

हाईकोर्ट ने कहा कि जीवित रहते भरण-पोषण का बकाया मृत बेटी की संपत्ति थी और उसकी मृत्यु के बाद, कानूनी अभिभावक होने के नाते उसकी मां इस संपत्ति की हकदार है.

Written by Nizam Kantaliya |Published : May 1, 2023 1:26 PM IST

नई दिल्ली: मद्रास हाईकोर्ट ने भरण पोषण के एक मामले में महत्वपूर्ण फैसला देते हुए कहा है कि एक मां अपनी मृतक बेटी को उसकी मृत्यु से पहले मिलने वाले भरण-पोषण के बकाए का दावा करने की हकदार है.

हाईकोर्ट ने कहा कि जीवित रहते भरण-पोषण का बकाया मृत बेटी की संपत्ति थी और उसकी मृत्यु के बाद, कानूनी अभिभावक होने के नाते उसकी मां इस संपत्ति की हकदार है.

Justice V Sivagnanam की पीठ ने अपने फैसले में यह भी स्पष्ट किया कि मृतक बेटी के मामले में मां केवल भरण-पोषण के बकाया मामले में ही हकदार है, क्योकि इस संपत्ति की प्रकृति विरासत में मिलने का है. लेकिन भविष्य के भरण-पोषण का अधिकार संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम की धारा 6 (डीडी) के आधार पर हस्तांतरणीय या विरासत योग्य नहीं है.

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पीठ ने अपने फैसले में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 15(1)(सी) के अनुसार, मां को अपनी बेटी की संपत्ति की हकदार मानते हुए निचली अदालत के फैसले को सही ठहराया है.

ये है मामला

याचिकाकर्ता अन्नादुरई ने वर्ष 1991 में सरस्वती से शादी करने के कुछ साल बाद ही विवाद के चलते अलग हो गए. पारिवारिक विवाद के बाद याचिकाकर्ता अन्नादुरई ने हिंदू विवाह अधिनियम के तहत निचली अदालत में तलाक की याचिका दायर की.

तलाक के बाद याचिकाकर्ता की पत्नी सरस्वती ने भी भरण-पोषण के लिए अदालत में याचिका दायर, जिस पर अदालत ने 7500 रुपये मासिक भरण-पोषण देने का निर्देश दिया.

अदालत ने याचिकाकर्ता पत्नी सरस्वती की याचिका पर उसके पति अन्नादुरई को याचिका दायर करने की तिथि से भरण पोषण का भुगतान करने का आदेश दिया.

भरण-पोषण के बकाया की वसूली के लिए सरस्वती ने 6,37,500 रुपये के बकाए का दावा करते हुए निचली अदालत में एक ओर याचिका दायर की.

इस आवेदन के अदालत में लंबित रहने के दौरान ही सरस्वती की मृत्यु हो गयी. जिसके बाद उसकी मां जया की ओर से उसे याचिकाकर्ता के रूप में शामिल करने और बकाया राशि वसूल करने की अनुमति देने के लिए एक याचिका दायर की.

निचली अदालत ने मृतक बेटी की मां के इस आवेदन को अनुमति दी. इस आदेश के खिलाफ मृतक बेटी के पति और याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट में चुनौती दी.

बचाव और विरोध

अन्नादुरई ने निचली अदालत के आदेश का विरोध करते हुए तर्क दिया कि भरण-पोषण सरस्वती का व्यक्तिगत अधिकार था और उसकी मृत्यु के बाद उसकी मां को यह अधिकार नही दिया जा सकता और ना ही भरण-पोषण के बकाया का दावा करने की हकदार है.

वही मृतक बेटी की मां की ओर से अदालत में कहा गया कि बकाया राशि उनकी बेटी की संपत्ति थी और हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 15 (1) (सी) के तहत, बेटे और बेटियों की अनुपस्थिति में मां अपनी मृत बेटी की उत्तराधिकारी है.

मां की ओर से कहा गया कि उनकी बेटी के तलाक के बाद, अन्नादुरई कानूनी उत्तराधिकारी नहीं रहे, इसलिए वह बकाया राशि प्राप्त करने के लिए सक्षम है.

निर्णय

दोनो पक्षो की बहस सुनने के बाद हाईकोर्ट ने निचली अदालत के आदेश को बरकरार रखते हुए मां को मृतक बेटी उसकी मृत्यु से पहले मिलने वाले भरण-पोषण के बकाए का दावा करने की हकदार माना है.

हाईकोर्ट ने कहा कि जीवित रहते भरण-पोषण का बकाया मृत बेटी की संपत्ति थी और उसकी मृत्यु के बाद, कानूनी अभिभावक होने के नाते उसकी मां इस संपत्ति की हकदार है.